नई दिल्ली/जम्मू: सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force- BSF) ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि आगामी सर्दियों में बढ़ने वाले कोहरे का लाभ उठाकर पाकिस्तान से घुसपैठ कराने का कोई प्रयास बेजा सफल नहीं होगा. बीएसएफ के जम्मू-फ्रंटियर के महानिरीक्षक (IG) शशांक आनंद ने कहा है कि जम्मू सेक्टर में सर्दियों के लिए तैयार की गई विशेष ‘शीतकालीन योजना’ लागू है और बल पूरी तरह तैनात होकर सीमा की निगरानी कर रहा है.
आईजी शशांक आनंद ने बताया कि हालिया खुफिया रिपोर्ट संकेत दे रही हैं कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकी संगठन, मई में चले ऑपरेशन सिंदूर के बाद फिर से अपने पाँव जमाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सर्दियों में बनने वाला कोहरा घुसपैठ के लिए पारंपरिक रूप से एक चुनौती रहा है, लेकिन इस बार सीमा पर निगरानी और जवाबी तंत्र उस चुनौती का मुकाबला करने के लिए और अधिक सशक्त है.
जवान पूरी सतर्कता के साथ तैनात हैं
आईजी आनंद ने जोर देकर कहा, "हमारे जवान पूरी सतर्कता के साथ तैनात हैं. शीतकालीन रणनीति तैयार है और सीमा पार से किसी भी तरह की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं."
उन्होंने यह भी जोड़ा कि बीएसएफ नियमित रूप से अपनी सहयोगी सुरक्षा एजेंसियों के साथ खुफिया जानकारी साझा कर रही है और सीमा पार गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा रही है.
कोहरा: समस्या भी और पूर्वानुमान भी
ठंडी सुबहों और देर रात के समय छाने वाला घना कोहरा सीमा पर निगरानी के लिए कठिनाइयाँ पैदा करता है- विज़ुअल गश्त, लंबी दूरी के कैमरों और पैदल टोपी-पालिसिंग (patrolling) पर असर पड़ता है. ऐसे मौसम में पारंपरिक प्रतिरक्षा प्रणालियाँ और मानवीय निगरानी सीमित हो सकती हैं, जिससे सीमापार उकसाने या घुसपैठ का प्रयास करने वालों को मौका मिल जाता है.
बीएसएफ ने इस संभावना को देखते हुए कई उपायों की रूपरेखा तैयार की है, अतिरिक्त गश्ती दल, सीमावर्ती चौकियों की मजबूती, रात-दिन अलर्ट व्यवस्था और उच्च संवेदनशीलता वाले इन्फ्रारेड व थर्मल सेंसरों के व्यापक उपयोग का निर्देश शामिल है. (इन तकनीकी और परिचालन उपायों का जिक्र अधिकारियों के सामान्य बयान और पारंपरिक अभ्यास के अनुरूप किया गया है.)
ऑपरेशन सिंदूर का असर और दुश्मन की तर्जनी
आईजी आनंद ने स्वीकार किया कि मई में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने सीमा पार मौजूद कुछ आतंकवादी ठिकानों तथा नेटवर्क को काफी हद तक प्रभावित किया था. ऑपरेशन के बाद आतंकवादी समूहों ने अपने ठिकानों का स्थान बदला और पुनर्गठन की कोशिशें तेज कर दीं, यही वजह है कि बीएसएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियाँ सतर्क हैं.
आनंद ने कहा कि बार-बार की गई घुसपैठ की कोशिशें अब तक नाकाम रही हैं और सीमा पर मौजूद बलों को आवश्यक निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि पर तुरन्त और निर्णायक कार्रवाई करें.
कठोर नियम और जवाबी कार्रवाई की अनुमति
बयान में यह भी कहा गया कि सरकार ने सीमा सुरक्षा बलों को ‘गोले का जवाब गोली से’ देने का स्पष्ट अधिकार प्रदान किया है जहाँ विदेशी आतंकियों को घुसपैठ कराने का प्रयास साबित हो. IG आनंद ने पत्रकारों को आश्वस्त करते हुए कहा कि हमारी सेनाएँ सीमा पार की हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रख रही हैं और आवश्यकतानुसार कड़ा जवाब देने से पीछे नहीं हटेंगी. साथ ही उन्होंने जनता को कहा कि घबराने की आवश्यकता नहीं, बल पूरी तरह तैयार हैं.
ड्रोन खतरों के खिलाफ प्रशिक्षण और तकनीक
आधुनिक युद्ध के स्वरूप में ड्रोन और मानवरहित हवाई वाहनों (UAVs) का उपयोग गतिशीलता के साथ बढ़ा है, ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रिस्क) से लेकर हड़ताल तक ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. IG आनंद ने यह स्वीकार किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोन विरोधी तंत्र और एयर डिफेंस सिस्टम कारगर रहे, लेकिन कहा कि अति-आत्मविश्वास रखना ठीक नहीं होगा.
BSF ने इस चुनौती से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं:
ग्वालियर (Gwalior) स्थित अपनी अकादमी में हाल ही में ‘ड्रोन युद्ध विद्यालय’ (Drone Warfare School) का आयोजन किया गया, जिसमें जवानों और अधिकारियों को ड्रोन-रोधी तकनीक, ऑपरेशन और जामिंग-निवारण तरीकों की ट्रेनिंग दी गई.
तकनीकी उपायों में RF जामर्स, काउंटर-UAV सिस्टम, तेज़ रेस्पॉन्स ड्रोन टीम्स और समन्वित दिशा-नियंत्रण शामिल हैं (अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ तालमेल के माध्यम से).
विशेष रूप से प्रशिक्षित टीमें और तैनाती योजनाएँ तैयार की जा रही हैं ताकि सीमापार से लॉन्च किए जाने वाले ड्रोन का समय रहते पता लगाया जा सके और प्रभावी ढंग से नष्ट किया जा सके.
सहयोग और समन्वय, एक अनिवार्यता
आईजी आनंद ने यह भी कहा कि सीमा सुरक्षा केवल बीएसएफ का काम नहीं है; यह एक समेकित कोशिश है जिसमें भारतीय सेना, वायुसेना, इंटेलिजेंस एजेंसियाँ और अन्य गृह सुरक्षा निकाय शामिल हैं. उन्होंने कहा कि सीमा पार से मिलने वाली खुफिया सूचना का शीघ्र और पारदर्शी आदान-प्रदान ही किसी भी घुसपैठ प्रयास को विफल कर सकता है.
सहयोग का यह तंत्र न केवल परिचालन जुड़ाव बढ़ाता है बल्कि संभावित खतरे की पहचान और उसे रोकने की क्षमता को भी मज़बूत बनाता है.
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