Bhind Death Certificate: क्या आपने कभी सोचा है कि कोई जिला ‘मर’ भी सकता है? नहीं ना? लेकिन मध्य प्रदेश के भिंड जिले में कुछ ऐसा ही चौंकाने वाला वाकया सामने आया है, जिसने न केवल सरकारी लापरवाही को उजागर किया, बल्कि लोगों को हंसी के साथ-साथ चिंता में भी डाल दिया है.
दरअसल, भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर निवासी गोविंद ने अपने दिवंगत पिता रामहेत की मृत्यु के सात साल बाद, अप्रैल 2025 में उनका डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए आवेदन दिया था. लेकिन जब 5 मई 2025 को तहसीलदार कार्यालय से प्रमाण पत्र मिला, तो उसमें मृतक का नाम, पता और स्थान — तीनों में "भिंड" दर्ज था यानी सरकारी दस्तावेज के अनुसार, अब ‘भिंड’ नामक जिला ही स्वर्ग सिधार चुका है. सोशल मीडिया पर इस 'कागजी मौत' की तस्वीरें आग की तरह फैल गईं. किसी ने लिखा - "लगता है पूरा जिला चल बसा!" तो किसी ने चुटकी ली - "अब क्या पोस्टल कोड का भी अंतिम संस्कार कर देंगे?"
तहसीलदार ने दी ये सफाई
जब मीडिया ने तहसीलदार मोहनलाल शर्मा से सवाल किया, तो उन्होंने इसे 'सिर्फ टाइपिंग मिस्टेक' बता दिया और सारा ठीकरा लोक सेवा केंद्र के सिर फोड़ दिया. उन्होंने केंद्र संचालक पर ₹25,000 का जुर्माना भी ठोक दिया, जैसे मानो खुद का डिजिटल सिग्नेचर उन्होंने आंख बंद करके कर दिया हो.
तहसीलदार पर हुआ एक्शन
यहां सवाल सिर्फ एक टाइपो का नहीं है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की जिम्मेदारी का है. जब किसी मृत्यु प्रमाण पत्र पर तहसीलदार के डिजिटल सिग्नेचर होते हैं, तो उसकी जांच करना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं बनती क्या? अपर कलेक्टर एल.के. पांडे ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तहसीलदार माखनलाल शर्मा को उनके पद से हटाकर भू-अभिलेख विभाग में अटैच कर दिया है.
भूल-चूक की कीमत कौन चुकाए?
ऐसे में आम नागरिक कैसे उम्मीद करे कि उसके जरूरी दस्तावेज बिना गलती के मिलेंगे? जब एक जिले का नाम मृतक के रूप में दर्ज किया जा सकता है, तो एक आम आदमी की पहचान, संपत्ति या अधिकार की रक्षा कैसे होगी? यह घटना महज एक मजाक नहीं, बल्कि सिस्टम पर सवाल है. जरूरी है कि सरकारी विभाग अपनी जवाबदेही समझें और ऐसी ‘कागजी मौतों’ से बचने के लिए गंभीर प्रयास करें. वरना अगली बार पता चलेगा कि 'भारत गणराज्य' को भी किसी ने गलती से मृत घोषित कर दिया है.
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