हैदराबाद में विश्वविद्यालय के पास बसे कान्चा गाचीबोवली इलाके के जंगलों में पेड़ों की अवैध कटाई अब देश की सबसे बड़ी अदालत के रडार पर है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए साफ कहा कि यह पूरा मामला एक पूर्व-नियोजित साजिश की तरह लगता है. गुरुवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस बात पर नाराजगी जताई कि जब कोर्ट की तीन दिन की छुट्टी थी, तब ही पेड़ काटे गए — ताकि कोई रोक-टोक न हो सके. कोर्ट ने तीखे लहजे में पूछा, “अगर आप की मंशा सही थी तो आपने काम सोमवार को क्यों नहीं शुरू किया?”
"यह अदालत के आदेश का उल्लंघन है"
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 3 अप्रैल को स्वतः संज्ञान लेकर जंगल में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था, यानी कोई नया काम नहीं होना चाहिए था. फिर भी, पेड़ काटे गए — जो सीधा अदालत के आदेश का उल्लंघन है. तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि अब वहां कोई गतिविधि नहीं हो रही और सरकार अदालत के निर्देशों का पालन करेगी. लेकिन कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुआ. कोर्ट ने कहा कि अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस पुनर्वनीकरण योजना सामने नहीं आई है.
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक चेतावनी
कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा कि अगर जंगल को बहाल नहीं किया गया, तो राज्य के मुख्य सचिव और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को जेल भेजा जा सकता है. कोर्ट ने साफ किया कि उसे सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की चिंता है, न कि बाकी मुद्दों की. सुनवाई के दौरान एक वकील ने बताया कि जंगल बचाने की कोशिश करने वाले छात्रों पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है. इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह फिलहाल केवल वन संरक्षण से जुड़े पहलुओं पर ही सुनवाई कर रहा है. छात्रों की शिकायतें अलग याचिका में सुनी जाएंगी. अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी, और तब तक तेलंगाना सरकार को एक व्यावहारिक और प्रभावी पुनर्वनीकरण योजना पेश करनी होगी.
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