मुंबई उपनगरीय जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने एयरलाइन कंपनी स्पाइसजेट को एक यात्री को ₹55,000 का भुगतान करने का आदेश दिया है. यह फैसला 14 घंटे की उड़ान देरी के दौरान यात्रियों को दी गई अपर्याप्त सुविधाओं को लेकर सुनाया गया, जहां एयरलाइन ने सिर्फ एक बर्गर और फ्रेंच फ्राई देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का दावा किया.
यह आदेश आयोग के अध्यक्ष प्रदीप कडू और सदस्य गौरी एम. कापसे ने सुनाया, जिसकी जानकारी सोमवार को सार्वजनिक की गई.
तकनीकी खराबी के बहाने नहीं चलेंगे – आयोग की सख्त टिप्पणी
स्पाइसजेट ने उड़ान में हुई लंबी देरी के लिए तकनीकी गड़बड़ी को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि परिस्थितियां असाधारण थीं. हालांकि, आयोग इस तर्क से सहमत नहीं हुआ. आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि सिर्फ देरी को "सामान्य" बताकर एयरलाइन अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती. आयोग के मुताबिक, इस तरह की स्थिति में यात्रियों को भोजन, पानी, आराम की सुविधा और पूरी जानकारी उपलब्ध कराना एयरलाइन की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है.
क्या था मामला?
यात्री ने 27 जुलाई 2024 को दुबई से मुंबई की यात्रा के लिए स्पाइसजेट की फ्लाइट बुक की थी. लेकिन विमान 14 घंटे की देरी से रवाना हुआ. इस पूरे इंतजार के दौरान, एयरलाइन ने सिर्फ एक बार भोजन दिया — वह भी एक बर्गर और फ्रेंच फ्राई के रूप में. यात्री का आरोप था कि स्पाइसजेट ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) द्वारा जारी नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं (CAR) का उल्लंघन किया है. इन दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि उड़ान लंबी अवधि तक विलंबित होती है, तो एयरलाइन को यात्रियों को खाद्य-पेय और आवश्यकता पड़ने पर होटल रुकने की सुविधा देनी होती है.
एयरलाइन का पक्ष और आयोग का जवाब
स्पाइसजेट ने अपनी सफाई में कहा कि देरी ऑपरेशनल और तकनीकी कारणों से हुई थी, जिस पर उसका नियंत्रण नहीं था. उसने यह भी दलील दी कि कुछ असाधारण परिस्थितियों में CAR में राहत की व्यवस्था है. हालांकि आयोग ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यदि एयरलाइन का दावा है कि उसने सभी उचित कदम उठाए हैं, तो उसे सबूत पेश करना होगा. चूंकि स्पाइसजेट ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं दे सकी, इसलिए यह मान लिया गया कि यात्री के साथ सेवा में कोताही बरती गई.
मानसिक पीड़ा और नुकसान के लिए मिला मुआवज़ा
हालांकि शिकायतकर्ता ने ₹4 लाख के मुआवज़े की मांग की थी, लेकिन आयोग ने कहा कि इतनी बड़ी राशि के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिया गया. इसके बावजूद, आयोग ने माना कि यात्री को हुई मानसिक परेशानी, असुविधा और थकान के लिए ₹50,000 का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए. साथ ही, मुकदमे के खर्च के रूप में ₹5,000 अतिरिक्त राशि भी देने का निर्देश दिया गया है.
उपभोक्ताओं के अधिकारों की अहम जीत
इस फैसले को उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है. यह स्पष्ट करता है कि एयरलाइंस को देरी की स्थिति में केवल खानापूर्ति नहीं करनी चाहिए, बल्कि यात्रियों की सुविधा और सम्मान का पूरा ध्यान रखना चाहिए.
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