इस्लामाबादः भारत द्वारा हाल ही में किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' की चोट अभी पाकिस्तान भूला भी नहीं था कि वहां एक बड़ा सैन्य घटनाक्रम सामने आया है. पाकिस्तान की सिविल सरकार ने अपने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को देश की सबसे बड़ी सैन्य पदवी – फील्ड मार्शल – से सम्मानित किया है. यह केवल एक प्रतीकात्मक फैसला नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि पाकिस्तान की सत्ता में अब एक बार फिर से सेना का दबदबा बढ़ रहा है.
जनरल मुनीर पाकिस्तान के दूसरे अधिकारी हैं जिन्हें यह रैंक दी गई है. इससे पहले सिर्फ जनरल मोहम्मद अयूब खान को 1959 में फील्ड मार्शल बनाया गया था, लेकिन तब और अब की परिस्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर है. अयूब खान ने खुद सत्ता हथियाई थी और खुद को यह रैंक दी थी, वहीं मुनीर को यह पद सिविल सरकार ने दिया है — हालांकि यह बात साफ है कि यह फैसला स्वतंत्रता से कम, दबाव में अधिक लिया गया है.
अयूब खान बनाम आसिम मुनीर
अयूब खान ने 1958 में तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली और अगले एक दशक तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने रहे. उन्होंने खुद को फील्ड मार्शल बनाया, फिर सेना से अलग होकर पूरी तरह से सत्ता का संचालन संभाला. इसके उलट जनरल मुनीर अब भी सेना प्रमुख बने रहेंगे और यह पद उन्हें एक तरह से 'सेना के भीतर सम्राट' जैसा दर्जा देगा.
इस बीच पाकिस्तान की संसद पहले ही सेना प्रमुख के कार्यकाल को तीन से बढ़ाकर पांच साल कर चुकी है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि सेना अब केवल रक्षा मामलों तक सीमित नहीं रहना चाहती.
जनरल मुनीर की पृष्ठभूमि
रावलपिंडी में जन्मे जनरल आसिम मुनीर को 1986 में कमीशन मिला था और वे शुरू से ही तेजतर्रार अधिकारी रहे हैं. उन्होंने ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ जैसे प्रतिष्ठित सम्मान भी पाए. सेना में विभिन्न अहम जिम्मेदारियां निभाने के बाद वे 2019 में आईएसआई के प्रमुख बने. पुलवामा हमले के समय वह इसी पद पर थे. 2022 में उन्हें पाकिस्तान का सेना प्रमुख नियुक्त किया गया.
मुनीर धार्मिक रूप से भी काफी प्रभावशाली माने जाते हैं — उन्होंने सऊदी अरब में पोस्टिंग के दौरान पूरा कुरान याद किया और खुद को एक अनुशासित, आध्यात्मिक छवि में भी प्रस्तुत किया.
क्या यह पाकिस्तान की राजनीति में सेना की वापसी है?
फील्ड मार्शल की रैंक सामान्यतः युद्धकाल में असाधारण नेतृत्व के लिए दी जाती है. भारत में यह रैंक अब तक केवल दो दिग्गजों — फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और फील्ड मार्शल के.एम. करियप्पा — को दी गई है, लेकिन पाकिस्तान में यह पद अधिकतर राजनीतिक संदेश देने का माध्यम बन गया है.
'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठा को बड़ा झटका लगा था. भारत ने आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी और पाकिस्तान कोई भी असरदार जवाब देने में विफल रहा. इसके बावजूद सेना प्रमुख को 'रणनीतिक विजन' के लिए सम्मानित करना, इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान में सेना केवल रक्षा नहीं, बल्कि सत्ता की असली धुरी है.
आगे क्या?
पाकिस्तान में सेना हमेशा से सत्ता की परछाईं में रही है, लेकिन फील्ड मार्शल जैसे संवेदनशील रैंक को सक्रिय सेना प्रमुख को देना इस परछाईं को अब स्पष्ट आकार देता है. इससे आने वाले दिनों में पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न और गहरे हो सकते हैं.
जनरल मुनीर का कार्यकाल 2027 तक रहेगा, और उनके इस नए रैंक के साथ यह लगभग तय माना जा सकता है कि वे केवल सेना नहीं, बल्कि पूरी सत्ता पर पकड़ बनाए रखेंगे. यह कदम पाकिस्तान को एक बार फिर उस रास्ते पर ले जाता दिख रहा है, जहां सियासत सेना की मर्जी से चलती है — और इतिहास गवाह है, यह रास्ता देश को स्थायित्व नहीं देता.
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