भारत के साथ जारी सीमा तनाव और आर्थिक बदहाली के बीच पाकिस्तान एक बार फिर चीन के दरवाजे पर मदद की गुहार लगाने पहुंच गया है. यह हालात न केवल पाकिस्तान की कर्ज पर निर्भरता को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी साफ करते हैं कि मौजूदा हालात में वह किसी भी बड़े टकराव को झेलने की स्थिति में नहीं है.
पाकिस्तान ने चीन से मांगा 1.4 अरब डॉलर का अतिरिक्त कर्ज
पाकिस्तान ने चीन से 10 बिलियन युआन (लगभग 1.4 अरब डॉलर) के अतिरिक्त ऋण की मांग की है. 27 अप्रैल को इस अनुरोध को सार्वजनिक करते हुए पाकिस्तान ने यह साफ कर दिया कि उसकी आर्थिक स्थिति लगातार गिरती जा रही है. इससे पहले उसे चीन द्वारा दी गई 4.3 अरब डॉलर (30 बिलियन युआन) की व्यापार सुविधा की अवधि हाल ही में तीन साल के लिए बढ़ाई गई थी, जिसका पूरा उपयोग पाकिस्तान पहले ही कर चुका है.
वाशिंगटन में की गई अपील, वित्त मंत्रालय ने जारी किया बयान
पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने यह मांग आईएमएफ और विश्व बैंक की वाशिंगटन में हुई वार्षिक बैठक के दौरान चीन के उप वित्त मंत्री लियाओ मिन से की. पाकिस्तान चाहता है कि मुद्रा विनिमय समझौते की सीमा को बढ़ाकर 40 बिलियन युआन कर दिया जाए, ताकि उसे अपने कर्ज के बोझ को कुछ हद तक संभालने में राहत मिले.
पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय ने 26 अप्रैल की देर रात इस बाबत बयान जारी किया. इसमें यह भी बताया गया कि चीन से पहले भी इस तरह की सहायता की अपील की गई थी, लेकिन बीजिंग ने अक्सर ऐसी मांगों को ठुकराया है.
चीन-पाक कर्ज व्यवस्था की हकीकत
हाल ही में चीन और पाकिस्तान के बीच हुए मुद्रा विनिमय समझौते ने पाकिस्तान को अपनी ऋण अदायगी की समय-सीमा 2027 तक बढ़ाने का मौका तो दे दिया है, लेकिन मौजूदा हालात में पाकिस्तान ने इस सुविधा का पूरा इस्तेमाल कर लिया है. अब जब उसके पास विकल्प सीमित हैं, तो वह फिर से चीन की शरण में पहुंचा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम एक तरह से दर्शाता है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किस हद तक आर्थिक सहायता पर निर्भर हो चुकी है.
आईएमएफ से भी आस लगाए बैठा है पाकिस्तान
इसी के साथ पाकिस्तान को आईएमएफ से भी राहत की उम्मीद है. वित्त मंत्री औरंगजेब ने भरोसा जताया है कि मई की शुरुआत में आईएमएफ कार्यकारी बोर्ड 1.3 अरब डॉलर के जलवायु लचीलापन ऋण कार्यक्रम को मंजूरी दे सकता है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान को इस कार्यक्रम के तहत 1 अरब डॉलर की एक और किस्त मिल सकती है. इससे पहले पाकिस्तान को 2024 में शुरू किए गए 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के अंतर्गत यह सहायता मिली थी, जो उसकी अस्थिर होती अर्थव्यवस्था को संतुलन में रखने के लिए बेहद जरूरी थी.
युद्ध की नहीं, कर्ज की है तैयारी
जिन हालातों में पाकिस्तान बार-बार चीन और आईएमएफ से मदद मांग रहा है, वो यह स्पष्ट कर देते हैं कि उसकी आर्थिक स्थिति युद्ध जैसी किसी स्थिति का सामना करने के लायक नहीं है. जबकि सीमा पर आक्रामक रुख दिखाने की कोशिश के बावजूद, उसकी असलियत 'कर्ज की लाठी' के सहारे चलने की मजबूरी को दर्शाती है.
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