मिडिल ईस्ट में तनाव का माहौल लगातार बढ़ता जा रहा है, और यह बढ़ती सैन्य खरीदारी और हथियारों के सौदों से और स्पष्ट हो रहा है. सऊदी अरब, इजिप्ट और सीरिया जैसे देशों ने अपने रक्षा बलों को मजबूत करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं. हाल ही में, सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ 600 बिलियन डॉलर के निवेश का समझौता किया है, जिसमें 142 बिलियन डॉलर के हथियारों की खरीद भी शामिल है. वहीं, इजिप्ट और सीरिया ने भी अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने के लिए अहम रक्षा डील्स की हैं. ये घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि मिडिल ईस्ट में युद्ध की आशंका और हथियारों की होड़ लगातार बढ़ रही है.
सऊदी अरब ने हाल ही में अमेरिका के साथ अपने रक्षा बलों को और मजबूत करने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया है. इस डील के तहत, सऊदी अरब 600 बिलियन डॉलर निवेश करने को तैयार है, जिसमें 142 बिलियन डॉलर का हथियार सौदा शामिल है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुताबिक, यह अब तक का सबसे बड़ा सैन्य सौदा है. इस डील का मुख्य उद्देश्य सऊदी अरब की रक्षा क्षमताओं को हाईटेक बनाना है. व्हाइट हाउस के अनुसार, सऊदी अरब लंबे समय से अपनी सेना में भारी निवेश कर रहा है और यह सौदा उसी प्रयास का हिस्सा है.
सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ किया बड़ा सौदा
यह डील इस समय मिडिल ईस्ट में चल रहे जटिल हालात के बीच एक महत्वपूर्ण कदम है, जहां ईरान और इजराइल के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि सऊदी अरब की सैन्य क्षमता को सुधारने से क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा, हालांकि इसे एक रणनीतिक कदम भी माना जा रहा है, ताकि सऊदी अरब को ईरान के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए तैयार किया जा सके.
इजिप्ट का मिसाइल सौदा
इजिप्ट ने भी अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत करने के लिए अमेरिका से एक बड़ा सौदा किया है. मिस्र ने अमेरिका से 4.67 बिलियन डॉलर की कीमत पर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की डील पक्की की है. इसमें सैकड़ों मिसाइलें, रडार सिस्टम और अन्य हथियार शामिल हैं. यह सौदा अमेरिका और नार्वे के संयुक्त प्रयास से विकसित एक एयर डिफेंस सिस्टम, NASAMS, के तहत हो रहा है. यह प्रणाली खासतौर पर ड्रोन और क्रूज मिसाइलों से निपटने के लिए डिजाइन की गई है.
मिस्र की इस डील का उद्देश्य अपने एयर डिफेंस सिस्टम को और मजबूत करना है, ताकि वह भविष्य में किसी भी बाहरी खतरे से निपटने के लिए तैयार रहे. यह सौदा खास तौर से मिडिल ईस्ट के ताजातरीन घटनाक्रम के मद्देनजर महत्वपूर्ण है, जहां सुरक्षा खतरों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
सीरिया और तुर्की के बीच रक्षा समझौता
सीरिया ने भी अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए तुर्की से मदद की अपील की है. तुर्की के रक्षा अधिकारियों ने पुष्टि की है कि सीरिया ने आतंकवाद और विशेषकर इस्लामिक स्टेट (ISIS) से निपटने के लिए तुर्की से रक्षा सहायता मांगी है. इस सहयोग में सीरिया को तकनीकी मदद और अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करने के लिए उपकरणों की आपूर्ति की जाएगी.
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन की पार्टी के प्रवक्ता ओमर सेलिक ने इस डील के बारे में कहा कि तुर्की हमेशा अपने "भाई देश" सीरिया के साथ खड़ा रहेगा, और जब तक सीरिया इस सहायता की मांग करेगा, तुर्की उसे पूरा करेगा. यह समझौता सीरिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह लंबे समय से आतंकवाद और विदेशी हमलों से जूझ रहा है.
मिडिल ईस्ट में बढ़ती सैन्य खरीदारी का क्या मतलब है?
मिडिल ईस्ट में हथियारों की होड़ और सैन्य डील्स बढ़ने का मतलब साफ है कि युद्ध का खतरा अब भी मंडरा रहा है. भले ही फिलहाल ईरान और इजराइल के बीच सीजफायर है, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव किसी भी समय भड़क सकता है. ऐसे में, सऊदी अरब, इजिप्ट और सीरिया जैसे देशों ने अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत करने के लिए ये सौदे किए हैं, ताकि भविष्य में किसी भी संकट का सामना किया जा सके.इन सौदों का दूसरा पहलू यह भी है कि क्षेत्र में आंतरिक और बाहरी ताकतों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है. एक ओर जहां सऊदी अरब और इजिप्ट अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सीरिया और तुर्की जैसे देशों ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया है. ऐसे में, अगर मिडिल ईस्ट में संघर्ष होता है, तो यह न सिर्फ स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी असर डाल सकता है.
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