महाराष्ट्र की राजनीति में संभावित गठबंधनों की सुगबुगाहट के बीच, शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के संभावित समीकरण ने सियासी हलकों में नई बहस को जन्म दे दिया है. इस बीच कांग्रेस के पूर्व नेता और शिवसेना (शिंदे गुट) के करीबी माने जाने वाले संजय निरुपम ने एक तीखी टिप्पणी कर सियासत का पारा और चढ़ा दिया है.
निरुपम ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों पर निशाना साधते हुए कहा, "जब दो शून्य मिलते हैं, तो कोई आंकड़ा नहीं बनता – बस एक और शून्य जुड़ जाता है." उनका यह बयान सीधे तौर पर दोनों दलों की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर कटाक्ष है.
“अब कांग्रेस से पूछकर ही बोलते हैं उद्धव”
संजय निरुपम ने दावा किया कि उद्धव ठाकरे अब अपनी राजनीतिक दिशा तय करने के लिए पूर्णतः कांग्रेस पर निर्भर हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि MNS के साथ किसी भी संभावित गठजोड़ से पहले उद्धव को कांग्रेस की अनुमति लेनी होगी. उनके अनुसार, “कभी कांग्रेस, कभी मुस्लिम वोटबैंक, और अब MNS — उद्धव को हमेशा किसी न किसी सहारे की जरूरत होती है.”
“दोनों पार्टियां राजनीतिक रूप से दिवालिया हो चुकी हैं”
निरुपम का यह भी कहना है कि शिवसेना (उद्धव गुट) और MNS दोनों ही अब जनता के बीच अपना प्रभाव खो चुके हैं. “ये पार्टियां अब सिर्फ अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए एक-दूसरे का सहारा ढूंढ़ रही हैं। जनता ने इन्हें नकार दिया है, अब ये ‘महाराष्ट्र के हित’ के नाम पर निजी लाभ की राजनीति कर रहे हैं.”
यह गठबंधन किसके लिए?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने MNS को साथ आने का प्रस्ताव भेजा है. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या यह गठजोड़ राज्य की राजनीति में कोई सार्थक बदलाव ला पाएगा, या यह सिर्फ दो कमजोर ताकतों की एक अस्थायी रणनीति होगी? संजय निरुपम के इस बयान ने राजनीतिक चर्चा को नया मोड़ दे दिया है. अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कांग्रेस इस संभावित गठबंधन पर क्या रुख अपनाएगी और MNS इसे किस नज़र से देखेगा.