भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों चीन की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं. इस यात्रा के दौरान, उन्होंने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए तियानजिन रवाना होंगे. इस यात्रा का पाकिस्तान के लिए एक अलग मायने हो सकता है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान के बीच करीबी रिश्ते रहे हैं, और इस दौरे से भारत और चीन के रिश्तों में नये मोड़ की उम्मीद जताई जा रही है.
द्विपक्षीय संबंधों पर नई सोच
जयशंकर ने इस यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने कहा कि बीजिंग पहुंचने के बाद उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात कर खुशी हुई और उन्हें एससीओ की अध्यक्षता के लिए भारत का समर्थन देने की बात बताई. साथ ही, द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए दोनों देशों ने अहम मुद्दों पर चर्चा की. विदेश मंत्री ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भी सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे भारत और चीन के बीच विश्वास और रिश्ते मजबूत होने की संभावना है.
गलवान के बाद की पहली यात्रा: एक नया कदम
यह एस. जयशंकर की 2020 में हुई गलवान घाटी झड़प के बाद चीन की पहली यात्रा है. दोनों देशों के रिश्तों में तनाव के बाद, यह कदम शांति और संवाद की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है. सीमा पर शांति बनाए रखने और व्यापार संबंधों में सुधार को लेकर इस यात्रा में अहम बातचीत होगी, जो न सिर्फ भारत और चीन के लिए बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी आवश्यक है. इस यात्रा से पाकिस्तान को झटका लग सकता है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान का रिश्ते हमेशा ही मजबूत रहे हैं. भारत अब चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए कदम उठा रहा है, और यह पाकिस्तानी हितों के खिलाफ हो सकता है.
सामूहिक सहयोग की ओर एक कदम
जयशंकर की इस यात्रा का एक बड़ा हिस्सा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भागीदारी है. इस बैठक में एससीओ के सदस्य देशों के विदेश मंत्री मिलेंगे, और इसमें भारत-चीन के बीच सामूहिक सहयोग के मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है. एससीओ महासचिव नुरलान येरमेकबायेव से भी एस. जयशंकर ने मुलाकात की, और उन्होंने इस मुलाकात को सकारात्मक बताया.
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर असर
चीन से संबंधों में सुधार के प्रयासों से पाकिस्तान को कुछ चिंताएं हो सकती हैं, क्योंकि चीन का भारत से संबंध सुधरना पाकिस्तान के लिए चुनौती बन सकता है. अब पाकिस्तान को इस क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में अपनी रणनीति पर पुनः विचार करना पड़ सकता है, क्योंकि अगर भारत और चीन के रिश्ते बेहतर होते हैं, तो इसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ेगा.
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