जनवरी में चुनावी जीत दर्ज करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़े वादे के साथ सत्ता में वापसी की थी. रूस और यूक्रेन के बीच जारी खूनी संघर्ष को खत्म करने का. सत्ता संभालने के बाद से महज सात महीनों में उन्होंने सात बार दोनों देशों के प्रतिनिधियों से बातचीत की, कभी सीधे तो कभी मध्यस्थों के जरिए. बावजूद इसके, ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आमने-सामने मुलाकात अब तक टलती रही है.
ट्रंप का तरीका हमेशा की तरह दबाव और बातचीत का मिला-जुला रूप है. उन्होंने रूस को दो टूक चेतावनी दी. अगर 8 अगस्त तक शांति वार्ता में ठोस प्रगति नहीं हुई तो अमेरिका भारी-भरकम टैरिफ लगाने में देर नहीं करेगा. यह आर्थिक दांव-पेंच और राजनीतिक वार्ता का ऐसा मिश्रण है, जिसमें संदेश साफ है. समाधान की राह या फिर आर्थिक चोट. क्रेमलिन से संकेत मिले हैं कि पुतिन-ट्रंप बैठक हो सकती है, लेकिन ट्रंप ने उसके लिए एक अनोखी शर्त रख दी है. पुतिन को पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मुलाकात करनी होगी.
पुतिन-ज़ेलेंस्की मुलाकात की अनिवार्यता
ट्रंप का कहना है कि पुतिन अक्सर शांति की बातें करते हैं, लेकिन उसके तुरंत बाद यूक्रेन पर हमले जारी रखते हैं. पुराने घटनाक्रमों को देखते हुए ट्रंप का मानना है कि बिना सीधे संवाद के वार्ता महज औपचारिक फोटो सेशन बनकर रह जाएगी. इसलिए उन्होंने साफ कर दिया कि पुतिन पहले ज़ेलेंस्की से आमने-सामने बैठकर बात करें, फिर वे खुद बातचीत की मेज पर आएंगे. व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यह रणनीति समय गंवाने वाली बैठकों से बचने और तीनों नेताओं को एक ही मंच पर लाकर युद्ध समाप्ति के लिए ठोस योजना तैयार करने की दिशा में है.
ऐतिहासिक मोड़ की संभावना
अगर पुतिन और ज़ेलेंस्की आमने-सामने बैठते हैं, तो यह 2022 में रूस के यूक्रेन पर पूर्ण हमले के बाद पहली बार होगा. यह अवसर इतिहास में दर्ज हो सकता है, क्योंकि अब तक न तो पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन और न ही यूरोपीय नेता ऐसी बैठक कराने में सफल हो पाए हैं. इस त्रिपक्षीय वार्ता से न केवल युद्ध खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाया जा सकता है, बल्कि यह वैश्विक कूटनीति का भी बड़ा उदाहरण बनेगा.
चुनौती और जोखिम
फिर भी, इस राह में कई बाधाएं हैं—रूस की अपनी शर्तें, यूक्रेन की संप्रभुता को लेकर चिंताएं और पश्चिमी देशों की रणनीतिक प्राथमिकताएं. लेकिन ट्रंप का अंदाज बताता है कि वे जोखिम से पीछे हटने वालों में नहीं हैं. वे अपने ‘डील मेकर’ वाली छवि को कायम रखते हुए इस बैठक को अपने दूसरे कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता बनाने का दांव खेल रहे हैं. अगर यह बैठक अपने मकसद में कामयाब होती है, तो यह न सिर्फ युद्ध की दिशा बदल सकती है, बल्कि अमेरिकी नेतृत्व की छवि को भी वैश्विक मंच पर नए सिरे से परिभाषित कर देगी.
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