नई दिल्ली: पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारत की एयर स्ट्राइक ने एक बार फिर 1971 के भारत-पाक युद्ध की यादें ताजा कर दी हैं. खासकर लोंगेवाला की ऐतिहासिक लड़ाई, जिसने यह साबित कर दिया कि साहस, रणनीति और जज्बा हो तो कम संसाधनों में भी बड़ी जीत हासिल की जा सकती है.
युद्ध की भूमिका
1971 के दिसंबर में जब भारत ने बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में सैन्य हस्तक्षेप किया, तो पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई के तहत भारत के पश्चिमी सीमांत पर हमला किया. उसकी मंशा थी कि राजस्थान के जैसलमेर और रामगढ़ क्षेत्र पर कब्जा किया जाए. इसके लिए लोंगेवाला पोस्ट को लक्ष्य बनाया गया.
2000 पाकिस्तानी बनाम 120 भारतीय
4-5 दिसंबर की रात को पाकिस्तान ने सीमा पार कर लोंगेवाला पर हमला कर दिया. उनके पास 2000 सैनिक, 45 से अधिक चीनी टैंक और भारी गाड़ियाँ थीं. दूसरी ओर लोंगेवाला चौकी पर केवल 120 भारतीय सैनिक थे. इनमें पंजाब रेजीमेंट के जवान, कुछ बीएसएफ कर्मी और चौकी के कमांडर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी थे. हथियार सीमित थे, लेकिन हौसला बुलंद था.
जब टैंकों की गड़गड़ाहट ने नींद तोड़ी
उस रात आसमान में पूर्णिमा का चांद चमक रहा था. अचानक सैनिकों को दूर से आती गड़गड़ाहट सुनाई दी. पहले तो सोचा गया कि शायद कोई वाहन रेगिस्तान की रेत में फंस गया है. लेकिन जल्द ही स्पष्ट हो गया कि यह पाकिस्तानी टैंकों का काफिला है. अलर्ट जारी हुआ और मेजर चांदपुरी ने मोर्चा संभाला.
वायुसेना की निर्णायक एंट्री
सुबह होते ही भारतीय वायुसेना के हंटर जेट्स ने मोर्चा संभाला. स्क्वॉड्रन लीडर डीके दास और फ्लाइट लेफ्टिनेंट इंदर गोसाई ने बेहद करीब से उड़ान भरते हुए टैंकों पर हमला किया. पूरे दिन चले इन हमलों में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के 45 से अधिक टैंकों को नष्ट कर दिया. हंटर विमानों ने बार-बार गोता लगाकर सटीक निशाने लगाए. पाकिस्तानी सेना हतप्रभ रह गई.
पाकिस्तानी सेना की रणनीति नाकाम
पाकिस्तानी फौज ने टैंकों को जिगजैग तरीके से चलाकर धूल का गुबार बनाने की कोशिश की, ताकि हवाई हमलों से बचा जा सके. लेकिन भारतीय पायलटों ने रॉकेट अटैक और स्मार्ट मूवमेंट से हर चाल को विफल किया. रेगिस्तान में गर्मी से कई पाकिस्तानी टैंकों के इंजन भी बंद हो गए.
पाकिस्तान की हार का प्रतीक
लोंगेवाला की लड़ाई में भारत ने न केवल रणनीतिक जीत दर्ज की, बल्कि पाकिस्तान के आत्मविश्वास को भी चकनाचूर कर दिया. उनके कब्जे की योजना ध्वस्त हो गई और सेना को पीछे हटना पड़ा. यह लड़ाई भारत की सैन्य कुशलता और फौजियों की वीरता का उदाहरण बन गई.
'बॉर्डर' फिल्म से परे असली कहानी
जेपी दत्ता की 'बॉर्डर' फिल्म ने लोंगेवाला की लड़ाई को लोकप्रिय बनाया, लेकिन सच्चाई इससे कहीं अधिक रोमांचक और प्रेरणादायक है. मेजर चांदपुरी को महावीर चक्र, कैप्टन धर्मवीर और भैरोंसिंह राठौड़ को सेना पदक से नवाजा गया.
आज भी जिंदा हैं वो सबूत
लोंगेवाला के युद्ध के निशान आज भी जैसलमेर स्थित वॉर म्यूजियम में देखे जा सकते हैं. पाकिस्तानी टैंकों के अवशेष, युद्ध में प्रयुक्त हथियार और बहादुरी की कहानियाँ यहां आने वाले हर व्यक्ति को देशभक्ति से भर देती हैं.
लोंगेवाला की लड़ाई सिर्फ एक युद्ध नहीं थी, यह भारत के जज्बे, हिम्मत और निर्णायक नेतृत्व की अमिट गाथा है.
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