ढाका: बांग्लादेश में चर्चित अर्थशास्त्री और सामाजिक विचारक प्रोफेसर अबुल बरकत को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार किया गया है. ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक, गुरुवार देर रात उनके घर पर छापेमारी के बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और शुक्रवार को कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने फिलहाल उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया है.
बरकत न सिर्फ बांग्लादेश की आर्थिक नीतियों पर गहरी पकड़ रखने वाले विशेषज्ञ माने जाते हैं, बल्कि वे लंबे समय से अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की वकालत करते रहे हैं. उनके समर्थकों का आरोप है कि यह गिरफ्तारी केवल एक राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा है.
क्या है पूरा मामला?
बरकत पर आरोप है कि उन्होंने जनता बैंक के चेयरमैन रहते हुए रेडीमेड गारमेंट कंपनी एनॉनटेक्स ग्रुप को अनुचित तरीके से कर्ज दिलाने में मदद की, जिससे बैंक को करीब 2.97 अरब टका (लगभग 225 करोड़ रुपए) का नुकसान हुआ.
बांग्लादेश के दुरुपयोग रोकथाम आयोग (ACC) ने इस मामले में बरकत समेत कुल 23 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. आरोप है कि लोन के लिए फर्जी दस्तावेज, काल्पनिक फैक्ट्रियों और भूमि की कृत्रिम कीमतें दर्शाकर बैंक को गुमराह किया गया.
हालांकि कोर्ट में पेशी के दौरान बचाव पक्ष ने जमानत की अर्जी दाखिल की, जबकि ACC ने तीन दिन की रिमांड की मांग की. फिलहाल अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए प्रोफेसर बरकत को जेल भेज दिया है.
बेटी ने लगाया अनियमितता का आरोप
अबुल बरकत की बेटी अरुणी बरकत ने मीडिया से बातचीत में दावा किया कि रात में 20 से अधिक लोग उनके घर में घुसे और उनके पिता को बिना गिरफ्तारी वारंट दिखाए अपने साथ ले गए. उन्होंने कहा कि परिवार को न तो किसी कानूनी नोटिस की जानकारी दी गई थी और न ही यह बताया गया कि किस आधार पर बरकत को गिरफ्तार किया जा रहा है.
अरुणी ने कहा, "मेरे पिता ने चार दशक तक ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाया और हमेशा समाज के वंचित वर्ग के लिए खड़े रहे. उनकी छवि को बिना जांच के नुकसान पहुंचाना पूरी तरह अनुचित है."
अल्पसंख्यकों पर बरकत के विचार
अबुल बरकत का नाम अक्सर हिंदू अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संदर्भ में लिया जाता है. उन्होंने 2016 में कहा था कि यदि धार्मिक उत्पीड़न और अवैध संपत्ति कब्जों की घटनाएं यूं ही चलती रहीं, तो 2046 तक बांग्लादेश से हिंदू समुदाय पूरी तरह खत्म हो सकता है.
बरकत के मुताबिक 1964 से 2013 के बीच 1.13 करोड़ हिंदू देश छोड़ने को मजबूर हुए. उन्होंने इसी विषय पर एक किताब भी लिखी- "The Political Economy of Reforming Agriculture-Land-Water Bodies in Bangladesh", जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह ‘शत्रु संपत्ति’ कानून के तहत 60% से ज्यादा हिंदुओं की जमीनें जब्त की गईं.
उन्हें जापान सरकार ने 2022 में ‘ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन’ सम्मान से भी नवाजा था.
राजनीतिक दबाव का संकेत?
बरकत की गिरफ्तारी को लेकर बांग्लादेश के नागरिक समाज और अल्पसंख्यक संगठनों ने चिंता जताई है. आलोचकों का मानना है कि यह गिरफ्तारी विचारों को दबाने का प्रयास हो सकती है, खासकर ऐसे वक्त में जब देश में अल्पसंख्यक अधिकारों और कट्टरपंथ के मुद्दे केंद्र में हैं.
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार कट्टरपंथी संगठनों के प्रति नरमी बरत रही है. उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे प्रतिबंधित संगठनों पर लगे बैन हटाए और सेक्युलर ताकतों जैसे छात्र लीग और अवामी लीग पर दबाव बनाया.
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