स्तन दबाना और पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप नहीं... इलाहाबाद HC के इस फैसले पर CJI नाराज, जानें क्या कहा?

    सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान निचली अदालतों द्वारा की जाने वाली असंवेदनशील टिप्पणियों पर गंभीर चिंता जताई है.

    Pressing breasts is not rape CJI angry over this decision of Allahabad HC
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान निचली अदालतों द्वारा की जाने वाली असंवेदनशील टिप्पणियों पर गंभीर चिंता जताई है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ न सिर्फ पीड़ितों को हतोत्साहित करती हैं, बल्कि कई बार उन्हें शिकायत वापस लेने के लिए भी मजबूर कर सकती हैं.

    सीजेआई ने स्पष्ट कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव पीड़ितों पर एक 'भय पैदा करने वाला प्रभाव' छोड़ता है और सुप्रीम कोर्ट इस स्थिति को सुधारने के लिए औपचारिक दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार कर रहा है.

    इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बना विवाद का केंद्र

    यह सुनवाई उस स्वतः संज्ञान मामले से जुड़ी है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में उठाया था. इसका कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह निर्णय था, जिसमें कहा गया था कि "सिर्फ स्तन दबाने या पायजामे की डोरी खींचने से बलात्कार का अपराध सिद्ध नहीं होता."

    सर्वोच्च अदालत ने इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई और साफ कर दिया कि हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया जाएगा ताकि ट्रायल बिना किसी कानूनी रुकावट के आगे बढ़ सके.

    सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, "हम हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर रहे हैं; प्रकरण अपनी सामान्य प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ेगा."

    अन्य अदालतों की टिप्पणियाँ भी सामने आईं

    सुनवाई के दौरान अमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने अदालत के सामने कुछ चौंकाने वाली टिप्पणियों के उदाहरण रखे.

    उन्होंने बताया, "इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ही एक अन्य मामले में कहा था कि रात में हुई घटना आमंत्रण जैसी प्रतीत होती है."

    कोलकाता और राजस्थान हाई कोर्ट में भी इसी तरह की टिप्पणियाँ रिकॉर्ड में दर्ज की गई थीं. हाल में एक इन-कैमरा ट्रायल में, एक नाबालिग पीड़िता के साथ अनुचित व्यवहार किए जाने की घटना भी सामने आई है, जो अत्यंत गंभीर है.

    अमिकस ने कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ न केवल अनुचित हैं बल्कि न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं.

    निचली अदालतों में संवेदनशीलता की कमी

    सीजेआई ने कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ अक्सर ट्रायल कोर्ट में अनदेखी रह जाती हैं, लेकिन उनका असर गहरा होता है. उन्होंने यह भी कहा कि जब जज इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं तो पीड़ित के लिए न्याय पाना और भी मुश्किल हो जाता है.

    सीजेआई ने कहा, "इन टिप्पणियों का इस्तेमाल अक्सर पीड़ित पर दबाव बनाने या समझौते के लिए मजबूर करने के साधन के रूप में किया जाता है."

    शीर्ष अदालत ने इशारा दिया कि यौन अपराध मामलों की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस पर विस्तृत गाइडलाइन तैयार की जाएगी.

    ये भी पढ़ें- 'वे हमारे साथ चीटिंग कर रहे...', भारत को फिर से धोखा देने की तैयारी में ट्रंप, लगाएंगे नया टैरिफ?