नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी और इसे भारत के इतिहास का एक "काला अध्याय" और देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक "बड़ा मोड़" बताया.
एक्स पर एक पोस्ट में, प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, "हम जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं. आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा उनके अदम्य साहस को याद रखेंगी. यह वास्तव में हमारे देश के इतिहास का एक काला अध्याय था. उनका बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक बड़ा मोड़ बन गया."
We pay homage to the martyrs of Jallianwala Bagh. The coming generations will always remember their indomitable spirit. It was indeed a dark chapter in our nation’s history. Their sacrifice became a major turning point in India’s freedom struggle.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 13, 2025
कई अन्य नेताओं ने भी पीड़ितों और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान 13 अप्रैल, 1919 को हुए क्रूर हत्याकांड के प्रभाव को याद किया.
अमित शाह ने क्या लिखा?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा, "जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. अमानवीयता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता के कारण देशवासियों में जो आक्रोश पैदा हुआ, उसने स्वतंत्रता आंदोलन को जन-संघर्ष में बदल दिया."
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "जलियांवाला बाग हत्याकांड के निर्दोष शहीदों को श्रद्धांजलि. भारत हमेशा उनका ऋणी रहेगा. 1919 में उस दिन औपनिवेशिक बर्बरता ने राष्ट्रीय चेतना की एक नई लहर को जन्म दिया, जो अधिक उग्र, निडर और स्वतंत्रता के लिए दृढ़ थी."
उन्होंने कहा, "बहादुर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का बलिदान हमें अपनी संप्रभुता, समावेशिता और स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है."
एस जयशंकर ने भी किया पोस्ट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी एक्स पर अपनी श्रद्धांजलि पोस्ट की: "जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि. हमारी स्वतंत्रता के लिए उनका दृढ़ संकल्प, साहस और बलिदान कभी नहीं भुलाया जा सकेगा."
क्या है जलियांवाल बाग हत्याकांड?
13 अप्रैल, 1919 को हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के औपनिवेशिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है. संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, इस हत्याकांड ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया और इसे साहस और प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.
यह हत्याकांड पंजाब के अमृतसर में हुआ था, जहाँ बैसाखी के त्यौहार के दौरान हज़ारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे. यह सभा रॉलेट एक्ट के खिलाफ़ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने और नेताओं डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू की रिहाई की माँग करने के लिए भी आयोजित की गई थी.
ब्रिटिश अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए अपने सैनिकों को निहत्थे भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया. संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, "1650 राउंड गोलियां चलाई गईं. गोला-बारूद खत्म होने के बाद ही गोलीबारी बंद हुई." जबकि आधिकारिक ब्रिटिश रिकॉर्ड में मरने वालों की संख्या 291 बताई गई थी, मदन मोहन मालवीय जैसे भारतीय नेताओं ने 500 से ज़्यादा लोगों की मौत का अनुमान लगाया था.
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, ब्रिगेडियर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान अपने किए पर कोई पछतावा नहीं दिखाया. हंटर आयोग के समक्ष अपनी गवाही में, जब उनसे गोलीबारी के बाद के हालात के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने "अपमानजनक रवैया" दिखाया.
जैसा कि मंत्रालय ने उद्धृत किया, उनसे पूछा गया, "गोलीबारी के बाद, क्या आपने घायलों की देखभाल के लिए कोई उपाय किए?" जिस पर डायर ने जवाब दिया, "नहीं, बिल्कुल नहीं. यह मेरा काम नहीं था. अस्पताल खुले थे, और उन्हें वहां जाना चाहिए था." संस्कृति मंत्रालय ने यह भी बताया कि जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान जनरल डायर के कार्यों को औपनिवेशिक अधिकारियों ने तुरंत स्वीकार किया और मंजूरी दी.
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, पंजाब प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर 'सर' माइकल ओ'डायर ने डायर को एक सीधा संदेश भेजा, जिसमें कहा गया था, "आपका कार्य सही है. लेफ्टिनेंट गवर्नर इसे मंजूरी देते हैं."
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