सिंगापुर में आयोजित शांगरी-ला डायलॉग 2025 के दौरान पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर मामले को वैश्विक मंच पर उठाने की कोशिश की. इस बार पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष, जनरल साहिर शमशाद मिर्जा ने कश्मीर को भारत-पाकिस्तान विवाद का केंद्रीय बिंदु करार देते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की मांग की.
कश्मीर को बताया 'अंतर्राष्ट्रीय चिंता' का विषय
सत्र के दौरान जनरल मिर्जा ने कहा कि अगर कश्मीर मुद्दे को बातचीत या बाहरी मध्यस्थता के ज़रिए हल नहीं किया गया, तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए विनाशकारी परिणाम ला सकता है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुरूप समाधान की बात कही और अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब, चीन, तुर्की और यूएई को संभावित मध्यस्थ देशों के रूप में नामित किया. उन्होंने यह भी कहा कि, “कश्मीरी जनता की आकांक्षाओं को नज़रअंदाज़ कर कोई स्थायी समाधान संभव नहीं है."
कोई तीसरा पक्ष नहीं
पाकिस्तान द्वारा बार-बार उठाई जा रही अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग पर भारत का रुख हमेशा की तरह स्पष्ट और कड़ा रहा है. भारत ने दोहराया है कि: कश्मीर पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है. भारत-पाक के बीच सभी मुद्दे द्विपक्षीय वार्ता से ही सुलझाए जाएंगे. बातचीत से पहले पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद और आतंकी संगठनों को समर्थन देना बंद करना होगा.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान की गतिविधियां तेज
भारत द्वारा हाल ही में किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान की ओर से कश्मीर पर बयानबाजी में तेजी देखी जा रही है. पाकिस्तानी नेता और सेना अधिकारी लगातार विदेशी मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठा रहे हैं और भारत पर मानवाधिकार हनन, दबाव और सैन्य दमन जैसे आरोप लगा रहे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति या राजनीतिक दबाव?
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान की यह कोशिश एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभारने और भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने की है. हालांकि, अधिकतर वैश्विक शक्तियों ने भारत की संप्रभुता का सम्मान करते हुए पाकिस्तान की मध्यस्थता की अपील को अब तक महत्व नहीं दिया है.
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