कभी भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आज़ादी की राह पर बढ़ने वाला पाकिस्तान, आज अपने ही फैसलों की कीमत चुका रहा है. 14 अगस्त 1947 को भारत से एक दिन पहले स्वतंत्र हुआ पाकिस्तान, आज आर्थिक मोर्चे पर बेहद नाजुक स्थिति में खड़ा है. हालात ऐसे हो चले हैं कि देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को खुलकर स्वीकार करना पड़ा है कि अब दुनिया पाकिस्तान को “भीख मांगते” नहीं देखना चाहती.
‘अब भीख नहीं, बराबरी की साझेदारी चाहिए’
शनिवार को एक सैन्य कार्यक्रम में बोलते हुए पीएम शहबाज शरीफ ने कहा कि अब हमारे मित्र राष्ट्र भी यह नहीं चाहते कि पाकिस्तान बार-बार भीख का कटोरा लेकर उनके सामने खड़ा हो. उन्होंने साफ तौर पर कहा, “चीन और सऊदी अरब हमारे भरोसेमंद साथी हैं, तुर्की, कतर और यूएई ने भी कई बार मदद की है. लेकिन अब वे हमसे शिक्षा, व्यापार और तकनीक जैसे क्षेत्रों में बराबरी की साझेदारी की उम्मीद करते हैं न कि बार-बार की वित्तीय सहायता.”
आटे के लिए खून बहाने तक पहुंचा देश
पाकिस्तान की गिरती आर्थिक हालत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल के महीनों में लोग राशन और आटे की बोरियों के लिए आपस में भिड़ गए, जिसमें कई बार हिंसा और मौतें तक हुईं. बढ़ती महंगाई, IMF के कड़े नियम, राजनीतिक अस्थिरता और सेना की भूमिका ने हालात को और जटिल बना दिया है.
"मैं और सेना प्रमुख आखिरी होंगे" – पीएम का वादा
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में सेना प्रमुख आसिम मुनीर का भी जिक्र किया और कहा, “मैं और जनरल मुनीर वो आखिरी लोग होंगे जो पाकिस्तान को इस हाल में देखना चाहते हैं. हम अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहते हैं.” मगर यह रास्ता आसान नहीं होगा, खासतौर पर तब जब पाकिस्तान का भरोसा अब भी IMF और अंतरराष्ट्रीय कर्जदाताओं पर ही टिका हुआ है.
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