पाकिस्तान के टुकड़े तय! बलूचिस्तान और खैबर में उठ रही आज़ादी की आवाज

    पाकिस्तान के भीतर अब एक नहीं, बल्कि कई मोर्चों पर उबाल देखने को मिल रहा है. देश के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा तक, आज़ादी की आवाज़ें तेज़ हो चुकी हैं.

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    पाकिस्तान के भीतर अब एक नहीं, बल्कि कई मोर्चों पर उबाल देखने को मिल रहा है. देश के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा तक, आज़ादी की आवाज़ें तेज़ हो चुकी हैं. इन इलाकों में न केवल लोगों का भरोसा इस्लामाबाद से उठ चुका है, बल्कि अब यह असंतोष खुले विद्रोह का रूप ले रहा है. पश्तून-बहुल वजीरिस्तान में रात के अंधेरे में लोगों ने मोबाइल की टॉर्च जलाकर सड़कों पर मार्च किया और एक सुर में नारा लगाया  “है हक हमारा आज़ादी… हम छीन के लेंगे आज़ादी.”

    ये घटनाएं पाकिस्तान की सियासी और सैन्य सत्ता के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं. एक तरफ बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) पाक सेना पर लगातार हमले कर रही है, वहीं दूसरी तरफ खैबर पख्तूनख्वा में पश्तून समुदाय, फौज के जुल्मों के खिलाफ खुलकर विरोध कर रहा है.

    वजीरिस्तान क्यों उबल रहा है?

    वजीरिस्तान, जो अफगानिस्तान की सीमा से लगा इलाका है, बीते कुछ सालों में पाकिस्तानी सेना के दबाव और ऑपरेशनों का केंद्र बन चुका है. यहां के स्थानीय लोगों का आरोप है कि TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के नाम पर सेना आम नागरिकों को निशाना बना रही है. मई 2024 में पाक सेना ने यहां पहली बार अपने ही क्षेत्र में ड्रोन हमले किए, जिसमें कई निर्दोष नागरिक मारे गए.

    सरकार का दावा है कि ये हमले TTP आतंकियों के खिलाफ थे, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूरी कार्रवाई एक सुनियोजित दमनचक्र थी. विरोध करने वालों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया. हजारों लोगों की गैरकानूनी गिरफ्तारियां, घरों में छापे और कथित फर्जी मुठभेड़ – यह सब अब आम बात बन चुकी है.

    राजनीतिक नेतृत्व और फौज में टकराव

    खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर ने खुलकर कहा है कि TTP को सिर्फ फौजी कार्रवाई से नहीं रोका जा सकता. उनका मानना है कि अगर स्थायी शांति चाहिए, तो सैन्य ऑपरेशन बंद करने होंगे और राजनीतिक समाधान की ओर बढ़ना होगा. लेकिन पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर इस रुख को मानने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि सेना पीछे नहीं हटेगी और ऑपरेशन तब तक जारी रहेंगे, जब तक TTP को पूरी तरह खत्म नहीं कर दिया जाता. इस मतभेद की कीमत आम नागरिक चुका रहे हैं. न केवल खौफ और हिंसा का माहौल बना है, बल्कि लोगों के मौलिक अधिकार भी छीने जा रहे हैं.

    खून की कीमत: सैनिकों की मौतों का आंकड़ा

    • बीते तीन वर्षों में खैबर पख्तूनख्वा में फौजी ऑपरेशनों और हमलों में जान गंवाने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या चौंकाने वाली है.
    • 2023: 651 हमलों में 500 सैनिक मारे गए
    • 2024: 732 हमलों में 700 सैनिकों की मौत
    • 2025 (अब तक): 300 हमलों में 220 सैनिक मारे गए. यह आंकड़े बताते हैं कि न केवल अस्थिरता बढ़ रही है, बल्कि पाक फौज को ज़मीनी स्तर पर भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

    बलूचिस्तान में भी बगावत तेज़

    बलूचिस्तान, जहां दशकों से अलगाववाद की चिंगारी सुलग रही है, अब पूरी तरह सुलग चुकी है. हाल ही में बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने दो अलग-अलग हमलों में 30 से अधिक पाक सैनिकों को मार गिराने का दावा किया है. इस इलाके में भी लोगों का यही आरोप है – जबरन गायब किए जाना, मानवाधिकारों का हनन और सैन्य बर्बरता.

    क्या पाकिस्तान बिखरने की कगार पर है?

    बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के हालात बता रहे हैं कि पाकिस्तान एक बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है. अगर यही हाल रहा, तो आने वाले समय में पाकिस्तान का विभाजन कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक सच्चाई बन सकता है. सिंध और पंजाब जैसे इलाके भी इन घटनाओं से अछूते नहीं रहेंगे. आज़ादी की लहर जब फैलती है, तो सीमाओं से नहीं रुकती.

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