आज के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर क्षेत्र में बदलाव ला रहा है. चाहे वो स्वास्थ्य हो, शिक्षा, ग्राहक सेवा या बैंकिंग. लेकिन जिस तकनीक को हमने मददगार समझा, वही अब हमारी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है. तकनीक कभी पूरी तरह 'अच्छी' या 'बुरी' नहीं होती, फर्क इस बात से पड़ता है कि उसका इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है. और अब जब AI का दुरुपयोग बढ़ रहा है, खासकर फाइनेंशियल सेक्टर में, तो चिंता करना वाजिब है.
AI के ज़रिए तैयार किए गए वॉयस क्लोन और वीडियो डीपफेक अब अपराधियों के लिए सबसे बड़ा हथियार बन चुके हैं — और आपकी मेहनत की कमाई पर खतरा मंडरा रहा है.
जब आपकी ही आवाज़ बन जाए जालसाजी का ज़रिया
AI की एक बेहद खतरनाक तकनीक है Voice Cloning, यानी किसी व्यक्ति की आवाज़ को हूबहू कॉपी करना. आजकल वॉयसप्रिंट आधारित ऑथेंटिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कुछ बैंक और वित्तीय संस्थान अब भी करते हैं. मगर AI अब इतना एडवांस हो चुका है कि किसी की आवाज़ की सिर्फ कुछ सेकंड की रिकॉर्डिंग से उसका वॉयस क्लोन बनाया जा सकता है. और फिर वो क्लोन आपकी जगह बैंक को कॉल कर सकता है, पैसे ट्रांसफर कर सकता है, या किसी ट्रांज़ैक्शन की पुष्टि कर सकता है.
वित्तीय संस्थान खतरे को गंभीरता से नहीं ले रहे
OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन ने हाल ही में फेडरल रिजर्व की कॉन्फ्रेंस में इसी खतरे को लेकर कड़ी चेतावनी दी. उन्होंने साफ कहा कि कई बैंक और वित्तीय संस्थाएं AI फ्रॉड को अब भी हल्के में ले रही हैं. ऑल्टमैन के अनुसार, वॉयसप्रिंट जैसे सिक्योरिटी फीचर अब समय के साथ अप्रचलित हो चुके हैं. अगर इन तकनीकों को बिना अपडेट किए इस्तेमाल किया जाता रहा, तो साइबर ठगों के लिए रास्ता खुला रहेगा.
Deepfake वीडियो बन सकते हैं अगला बड़ा खतरा
वॉयस क्लोनिंग के बाद अगली चिंता Deepfake Videos को लेकर है. AI के ज़रिए अब ऐसे वीडियो बनाए जा सकते हैं जिनमें किसी भी व्यक्ति को कुछ कहते या करते दिखाना संभव है. भले ही उन्होंने ऐसा कुछ किया ही न हो. भविष्य में यही Deepfakes फेस रिकग्निशन सिस्टम को भी चकमा देने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे पहचान के सारे पारंपरिक तरीके खतरे में आ जाएंगे.
Generative AI के ज़रिए साइबर ठगी अब और आसान
Generative AI टेक्नोलॉजी, जो पहले सिर्फ क्रिएटिव इंडस्ट्री में मानी जाती थी, अब साइबर ठगों के लिए सबसे बड़ा हथियार बन गई है. AI अब इतना तेज़ हो चुका है कि सिर्फ सोशल मीडिया पर मौजूद आपकी तस्वीरें, आवाज़ या वीडियोज़ देखकर आपकी नक़ल तैयार कर सकता है, और फिर उसी नक़ली पहचान से बैंकिंग फ्रॉड, ठगी या पहचान की चोरी जैसे अपराध अंजाम दिए जा रहे हैं.
अब क्या करें? समाधान क्या है?
बैंकों को अपडेट होना होगा:पुरानी सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी को छोड़कर नई, AI-रेज़िस्टेंट तकनीकों को अपनाना होगा.
दो-स्तरीय ऑथेंटिकेशन जरूरी: केवल वॉयस या फेस रिकग्निशन के भरोसे न रहें — पासवर्ड, OTP और बायोमेट्रिक्स जैसे मल्टीफैक्टर ऑथेंटिकेशन को बढ़ावा देना होगा.
जनता को जागरूक करना: हर आम नागरिक को यह जानकारी होनी चाहिए कि उनकी डिजिटल पहचान कैसे सुरक्षित रखी जाए और किस पर विश्वास करना है, किस पर नहीं.
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