भारत की विज्ञापन इंडस्ट्री एक बड़े झटके की ओर बढ़ रही है. सरकार द्वारा रियल मनी ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से अनुमानित तौर पर करीब 4,500 करोड़ रुपये का विज्ञापन खर्च बाजार से गायब हो सकता है. यह असर विशेष रूप से उन मीडिया और स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म्स पर देखा जाएगा, जिनकी कमाई का बड़ा हिस्सा इन्हीं गेमिंग ब्रांड्स के प्रचार से होता है.
सरकार द्वारा संसद में पारित किए गए ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन एंड रेगुलेशन बिल को अब राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है. इसके तहत पैसे से खेले जाने वाले सभी ऑनलाइन गेम्स, फैंटेसी ऐप्स और सोशल गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाएंगे. सरकार का मानना है कि यह गतिविधि समाज में नशे, लत और आर्थिक अस्थिरता जैसी समस्याएं पैदा कर रही है, और इसे अब नियंत्रित किया जाना जरूरी है.
विज्ञापन जगत में रियल मनी गेमिंग का बड़ा योगदान
पिछले कुछ वर्षों में रियल मनी गेमिंग कंपनियां भारतीय विज्ञापन बाजार की एक अहम खिलाड़ी बन चुकी थीं. पल्प स्ट्रैटेजी की फाउंडर अंबिका शर्मा के अनुसार, इन कंपनियों की भारतीय ऐड स्पेंड में 6–7% हिस्सेदारी रही है, जो कि आईपीएल जैसे बड़े इवेंट्स के दौरान और अधिक बढ़ जाती है. इन ब्रांड्स का प्राथमिक ध्यान डिजिटल, टीवी, ओटीटी और खेल आयोजनों में विज्ञापन देने पर होता है. यदि इन्हें बंद कर दिया गया, तो यह विज्ञापन खर्च सीधा इंडस्ट्री से कट जाएगा, जिसकी भरपाई तत्काल नहीं हो सकेगी.
70,000 करोड़ की इंडस्ट्री को होगा सीधा नुकसान
भारत का कुल विज्ञापन बाजार लगभग 70,000 करोड़ रुपये का है. ऐसे में रियल मनी गेमिंग प्लेटफॉर्म्स का 4,500 करोड़ रुपये का योगदान मामूली नहीं कहा जा सकता. अडानी ग्रुप के डिजिटल मीडिया जनरल मैनेजर चंदन शर्मा का कहना है कि भले ही ये प्लेटफॉर्म अभी भी इंडस्ट्री के एक छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन उनका रुझान विज्ञापन में निवेश बढ़ाने का रहा है. प्रतिबंध के बाद यह प्रवृत्ति पूरी तरह से थम जाएगी.
स्पोर्ट्स इवेंट्स पर सबसे गहरा प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का सबसे गहरा असर खेल आयोजनों और ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर पर पड़ेगा. फैंटेसी स्पोर्ट्स और रियल मनी गेमिंग कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में आईपीएल, प्रो कबड्डी लीग, और अन्य रीजनल टूर्नामेंट्स में मुख्य प्रायोजक की भूमिका निभाई है. अगर ये विज्ञापन स्रोत बंद हो गए तो ब्रॉडकास्टर्स और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स को करीब 2,000 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है. खेल आयोजनों के साथ-साथ छोटे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भी फंडिंग में बड़ी कमी का सामना करना पड़ेगा.
बाजार में खालीपन, जिसे भरना आसान नहीं
रियल मनी गेमिंग कंपनियां महज विज्ञापनदाता नहीं थीं, वे स्पोर्ट्स और डिजिटल मीडिया के विकास की रीढ़ बन चुकी थीं. उनके जाने से जो आर्थिक खालीपन उत्पन्न होगा, उसे भरना आसान नहीं होगा. परंपरागत ब्रांड्स इस अंतर को भरने की कोशिश जरूर करेंगे, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया धीमी और चुनौतीपूर्ण होगी.
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