नई दिल्ली: भारत के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान देश की बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों, वेस्ट मैनेजमेंट और हरित ऊर्जा को लेकर सरकार के विजन को साझा किया. उन्होंने कहा कि अगर भारत ने सॉलिड और लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट को गंभीरता से अपनाया, तो यह क्षेत्र 5 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था बन सकता है.
उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उनके अपने संसदीय क्षेत्र नागपुर और मथुरा जैसे शहर इस दिशा में मॉडल बनकर उभर रहे हैं. पढ़ें पूरा विवरण:
सवाल: आपने वेस्ट मैनेजमेंट को 5 लाख करोड़ की इकॉनमी बताया, क्या यह वास्तव में संभव है?
नितिन गडकरी का जवाब: बिलकुल, यह पूरी तरह संभव है. मैंने यह कहा था कि अगर हम सॉलिड और लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट को व्यवस्थित तरीके से अपनाएं, तो यह क्षेत्र 5 लाख करोड़ रुपये की वेस्ट टू वेल्थ इकॉनमी बन सकता है.
उदाहरण के लिए, नागपुर नगर निगम में हम टॉयलेट से निकलने वाले गंदे पानी को ट्रीट कर महाराष्ट्र सरकार के कोराडी और खापरखेड़ा थर्मल पावर प्लांट्स को बेचते हैं. इससे हर साल ₹300 करोड़ की कमाई होती है.
सवाल: मथुरा में भी आपने एक सफल प्रोजेक्ट की बात की, वो क्या है?
जवाब: हां, मथुरा में हमने 80 MLD गंदे पानी के ट्रीटमेंट के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया है.
हमने टेंडर निकाला, जिसे त्रिवेणी इंजीनियरिंग कंपनी ने हाइब्रिड एन्युटी मॉडल के तहत लिया. इसमें 40% फंड सरकार दे रही है और 60% कंपनी ने निवेश किया.
अब शुद्ध पानी इंडियन ऑयल रिफाइनरी, मथुरा को 20 करोड़ रुपये में बेचा जा रहा है. इससे न सिर्फ पानी की बर्बादी रुकी, बल्कि रिफाइनरी को भी सस्ता और स्वच्छ जल मिला. यह एक मॉडल प्रोजेक्ट है वेस्ट टू वेल्थ का.
सवाल: क्या रिसाइक्लिंग भी इस अर्थव्यवस्था का हिस्सा हो सकती है?
जवाब: बिलकुल. आज प्लास्टिक, कॉपर, मेटल्स और ग्लास — सबका रिसाइक्लिंग किया जा सकता है. हमारे यहां बायोडाइजेस्टर प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं जिनमें ऑर्गेनिक वेस्ट से मीथेन गैस बनाई जाती है और उसी से अब 28 टन CNG प्रतिदिन बनने लगी है.
इंदौर इस मामले में एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां वेस्ट से फ्यूल बनाया जा रहा है. आने वाले समय में कचरे के लिए झगड़े होंगे, क्योंकि कचरा अब "समस्या" नहीं, “संसाधन” बन गया है.
सवाल: आपने फ्लैश की बात की थी, वो किस संदर्भ में?
जवाब: पहले लोग फ्लैश (थर्मल पावर स्टेशन की राख) को पर्यावरण के लिए नुकसानदायक मानते थे. लेकिन आज यह सीमेंट इंडस्ट्री में 35% तक इस्तेमाल हो रही है. रोड कंस्ट्रक्शन में भी इसका प्रयोग हो रहा है.
अब फ्लैश के लिए भी डिमांड बढ़ रही है. एक समय में जिसे हम फेंकते थे, अब वही विकास का साधन बन रहा है.
सवाल: आपने दिल्ली के प्रदूषण का उल्लेख किया और कहा कि आप ज्यादा समय वहां नहीं रुकते? क्या कारण है?
जवाब: हां, दिल्ली का वायु प्रदूषण बहुत गंभीर स्तर पर है. मैं जब भी यहां आता हूं, मुझे अक्सर इंफेक्शन हो जाता है, इसलिए ज़्यादा समय रुकना मुश्किल हो जाता है.
लेकिन मैं दिल्ली-एनसीआर के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा हूं — जिनमें इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करना, फ्लेक्स फ्यूल, हाइड्रोजन और इथेनॉल जैसे वैकल्पिक ईंधन को बढ़ावा देना शामिल है.
सवाल: वैकल्पिक ईंधन जैसे इथेनॉल पर कितना काम हुआ है?
जवाब: बहुत तेजी से. पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाया जा रहा है. अब हम 27% मिश्रण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हमने मक्का, गन्ने का रस, बांस, पराली और ब्रोकन राइस से इथेनॉल बनाना शुरू किया है.
आगे जाकर इथेनॉल से आइसोबुटेनॉल बनाया जाएगा, जो डीजल का विकल्प बन सकता है. इसके प्रयोग शुरू हो गए हैं.
सवाल: क्या किसानों को भी इससे फायदा हो रहा है?
जवाब: बिलकुल. मक्का का MSP ₹1800 प्रति क्विंटल था, लेकिन जैसे ही इथेनॉल बनाने की घोषणा हुई, मक्का का भाव ₹2800 तक पहुंच गया. इससे किसान को सीधा लाभ मिला.
अब बिहार, यूपी, राजस्थान जैसे राज्यों में मक्का की खेती तीन गुना तक बढ़ गई है. इसका सीधा असर किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है.
सवाल: इस पूरी योजना के पीछे आपका दीर्घकालिक लक्ष्य क्या है?
जवाब: मेरा लक्ष्य है कि भारत आत्मनिर्भर बने, किसान समृद्ध हों, और देश का प्रदूषण कम हो. हमारा देश ईंधन आयात पर निर्भर न रहे और कचरे को संसाधन में बदलकर न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करे, बल्कि रोजगार और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दे.