कलमा सीख रहे हैं भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, एक्स पर पोस्ट करके बताई वजह

    झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं. पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ दिए बयान पर अवमानना का मामला, और अब उनके सोशल मीडिया मंच 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए हालिया पोस्ट ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.

    Nishikant Dubey say learning kalma might be i need somewhere
    Image Source: Social Media

    झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं. पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ दिए बयान पर अवमानना का मामला, और अब उनके सोशल मीडिया मंच 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए हालिया पोस्ट ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.

    "कलमा सीख रहा हूं, पता नहीं कब ज़रूरत पड़े" 

    गुरुवार को निशिकांत दुबे ने एक ट्वीट में इस्लामी 'कलमा' लिखा और साथ ही टिप्पणी की "आजकल कलमा सीख रहा हूं, पता नहीं कब ज़रूरत पड़े." इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. कई यूजर्स ने इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश बताया, वहीं कुछ लोगों ने इसे व्यंग्य के रूप में लिया.

    नेहरू पर निशाना, पाकिस्तान को पानी बंद करने की बात

    एक अन्य ट्वीट में दुबे ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को सिंधु जल समझौते को लेकर आड़े हाथों लिया. उन्होंने लिखा: "नेहरू जी ने नोबेल के चक्कर में पाकिस्तान को पानी दिया और आज मोदी जी ने दाना-पानी बंद कर दिया है. बिना पानी के पाकिस्तानी मरेंगे. यह है 56 इंच का सीना. हम सनातनी भाजपा के कार्यकर्ता हैं, तड़पा-तड़पा के मारेंगे." यह बयान अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और मानवीयता को लेकर भी चर्चा का विषय बन गया है. "गांधी परिवार को आज भी मुसलमान दिखते हैं" – कांग्रेस पर हमला कांग्रेस पर निशाना साधते हुए निशिकांत दुबे ने ट्वीट किया "दुख की इस घड़ी में भी गांधी परिवार को मुसलमान दिखता है. कांग्रेस की यह मानसिकता ही देश में नफरत की जड़ है." उन्होंने आगे दावा किया कि भारत की एकता और मजबूती का आधार सनातन धर्म है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश आतंकवाद और आतंकी समर्थकों को माकूल जवाब देगा.

    राजनीति या उकसावे की रणनीति?

    निशिकांत दुबे के इन बयानों को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान आगामी चुनावों से पहले ध्रुवीकरण की कोशिश है, जबकि अन्य इसे व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की आज़ादी से जोड़ते हैं.

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