काठमांडू: दक्षिण एशिया के देशों को एकजुट करने के लिए बनाए गए सार्क (साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन) के पुनर्निर्माण की पाकिस्तान और चीन की कोशिशों को नेपाल ने बड़ा झटका दिया है. नेपाल, जो वर्तमान में सार्क का अध्यक्ष है, ने साफ तौर पर कहा है कि वह नए सार्क के गठन के पक्ष में नहीं है. नेपाल का मानना है कि पहले से मौजूद सार्क को ही पुनः प्रासंगिक बनाना चाहिए, जिसमें भारत की पूरी भागीदारी सुनिश्चित हो. इस बीच, पाकिस्तान और चीन के साथ बांग्लादेश द्वारा एक नया समूह बनाने की योजना के संकेत मिले थे, जिसमें भारत को बाहर रखा जा सकता है.
नेपाल ने इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह इस नए समूह के गठन में शामिल होने का कोई इरादा नहीं रखता. काठमांडू में स्थित सार्क सचिवालय का प्रमुख होने के नाते नेपाल की यह स्थिति महत्वपूर्ण है. नेपाल की इस स्पष्ट नीति के बाद पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश के नए सार्क बनाने के ख्वाब को फिलहाल झटका लग गया है.
क्या है पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश का प्लान?
पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश के बीच हाल ही में हुई बैठक में इस बात की चर्चा हुई थी कि वे दक्षिण एशिया में एक नया समूह बनाना चाहते हैं जिसमें भारत को बाहर रखा जाएगा. इस बैठक के बाद 'नए सार्क' का विचार सामने आया था, हालांकि पाकिस्तान ने बाद में यह दावा किया कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने अब तक नेपाल से इस नए सार्क में शामिल होने की कोई बात नहीं की है.
नेपाल के सूत्रों के अनुसार, काठमांडू को चीन और पाकिस्तान की इस नई योजना में शामिल होने का कोई मन नहीं है. नेपाल का कहना है कि वह पुराने सार्क को फिर से जीवित करने की दिशा में काम करेगा, जिसमें सभी सदस्य देशों को समान रूप से शामिल किया जाएगा.
भूतान का रुख भी साफ भारत से निकटता बरकरार
चीन और पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया में अपनी रणनीतिक पकड़ को मजबूत करने के लिए नए सिरे से समूह बनाने की कोशिश की है. हालांकि, भूटान जैसे भारत के करीबी सहयोगी देश को इसमें शामिल होने की संभावना नहीं है. पाकिस्तान और चीन का यह कदम भारत को घेरेबंदी में लाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन भूटान का रुख पहले जैसा ही भारत के पक्ष में रहने की संभावना है.
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण
चीन और पाकिस्तान का इरादा इस नए समूह के माध्यम से दक्षिण एशिया में आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचे का विकास और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करना है. हालांकि, पाकिस्तान और चीन के प्रयासों से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि वे भारत के प्रभाव को कम करने के लिए इस नए गठबंधन का इस्तेमाल कर सकते हैं.
यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ समय में पाकिस्तान को चीन का समर्थन प्राप्त हुआ है, चाहे वह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हो या फिर हथियारों और अन्य सैन्य मदद के मामले में. इसके साथ ही, चीन ने बांग्लादेश के साथ भी अपने रिश्तों को मजबूती से बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी हैं.
भारत और चीन के रिश्तों में सुधार के बीच नया कदम
चीन और पाकिस्तान द्वारा इस नए सार्क के गठन की कोशिशें उस समय हो रही हैं जब भारत और चीन के रिश्तों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ रहे हैं. हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन की यात्रा की और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लिया. इसके साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा भी फिर से शुरू हो गई है, जो भारत और चीन के बीच बेहतर रिश्तों का प्रतीक मानी जा रही है.
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