'इंदिरा गांधी बोल रही हूं, सीक्रेट काम के लिए 60 लाख चाहिए', नगरवाला घोटाला जिसमें बैंक को लूट लिया

    भारतीय बैंकिंग इतिहास का वो दिन जिसे आज भी जब कोई याद करता है, तो विश्वास करना कठिन होता है कि ऐसा कुछ वास्तव में हुआ था.

    Nagarwala scam in which the bank was looted
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Social Media

    नई दिल्ली: भारतीय बैंकिंग इतिहास का वो दिन जिसे आज भी जब कोई याद करता है, तो विश्वास करना कठिन होता है कि ऐसा कुछ वास्तव में हुआ था. देश की सबसे प्रतिष्ठित बैंक शाखाओं में से एक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, संसद मार्ग, दिल्ली. और एक फोन कॉल, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री की आवाज़ की नकल करके पूरे तंत्र को धोखा दे दिया.

    इस कांड को अंजाम देने वाला था रुस्तम सोहराब नागरवाला, सेना का पूर्व कैप्टन. लेकिन इस कहानी की शुरुआत होती है एक बेहद साधारण से बैंक कर्मी, हेड कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा, के टेलीफोन उठाने से.

    एक फोन कॉल जिसने देश को हिला दिया

    11 बजकर 45 मिनट. मल्होत्रा अपनी डेस्क पर बैठे थे कि फोन की घंटी बजी. दूसरी ओर से आवाज़ आई, "प्रधानमंत्री कार्यालय से हक्सर साहब बोल रहे हैं." और फिर एक गहरी, प्रभावशाली आवाज़ में कथित ‘हक्सर’ ने कहा कि प्रधानमंत्री को एक गुप्त मिशन के लिए तुरंत 60 लाख रुपये की आवश्यकता है.

    जब मल्होत्रा ने चेक या अनुमति पत्र की माँग की, तो जवाब मिला: "यह एक बेहद गोपनीय राष्ट्रीय कार्य है. पीएम का आदेश है, रसीद बाद में मिलेगी."

    मल्होत्रा अब भी संदेह में थे, तभी फोन पर एक और आवाज़ आई, "मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बोल रही हूं... मेरे सेक्रेटरी ने जैसा आपको बताया है, गोपनीय काम के लिए तुरंत 60 लाख रुपये की जरूरत है. तुरंत इसका इंतजाम करवाएं."

    यह सुनकर मल्होत्रा का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने बाद में बयान में स्वीकार किया कि “आवाज़ ने उन पर जादू सा असर किया” और वह हर निर्देश मानने को तैयार हो गए.

    मैं बांग्लादेश का बाबू हूं- कोडवर्ड

    मल्होत्रा को बताया गया कि पैसा लेने वाला व्यक्ति एक विशेष कोडवर्ड बोलेगा — "मैं बांग्लादेश का बाबू हूं", और मल्होत्रा को जवाब देना होगा — "मैं बार एट लॉ हूं."

    बिना किसी लिखित दस्तावेज के, मल्होत्रा ने दो जूनियर कैशियरों की मदद से 60 लाख रुपये स्ट्रॉन्गरूम से निकाले, उन्हें दो ट्रंकों में बंद किया और बैंक की एम्बेसेडर कार में बताई गई जगह 'फ्री चर्च' के पास पहुँच गए.

    वहाँ एक लंबा-चौड़ा, गोरा व्यक्ति हल्के हरे रंग की टोपी में आया और वही कोडवर्ड बोला. रकम लेकर वह व्यक्ति चला गया.

    अपराध का पर्दाफाश और गिरफ्तारी

    मल्होत्रा सीधे प्रधानमंत्री निवास पहुँचे ताकि रसीद प्राप्त कर सकें. लेकिन वहाँ के अधिकारियों ने जब ऐसे किसी निर्देश से इनकार किया, तब उन्हें समझ में आया कि उनके साथ बड़ी ठगी हो गई है.

    घटना की सूचना तुरंत चाणक्यपुरी थाने को दी गई. तेज़ कार्रवाई में एसएचओ हरिदेव ने हवाई अड्डे से रुस्तम सोहराब नागरवाला को धर दबोचा. रकम भी अधिकांशतः बरामद कर ली गई.

    नागरवाला ने तुरंत अपराध स्वीकार कर लिया और चार साल की सजा सुनाई गई. लेकिन इससे पहले कि अदालत में गहराई से मामला जांच के घेरे में आता, नागरवाला की तिहाड़ जेल में रहस्यमयी ढंग से मृत्यु हो गई, कहा गया कि दिल का दौरा पड़ा. कुछ समय बाद जांच अधिकारी डी.के. कश्यप की भी असामयिक मौत ने इस केस पर और भी सवाल खड़े कर दिए.

    आज भी रहस्य बना हुआ है यह घोटाला

    हाल ही में प्रकाशित ‘The Scam That Shook the Nation’ किताब में पत्रकार प्रकाश पात्रा और राशिद किदवई ने इस मामले की परतें खोलने का प्रयास किया है. यह किताब एक बार फिर इस सवाल को उठाती है — क्या नागरवाला अकेला था? क्या उस आवाज़ के पीछे कोई और था? क्या यह सिर्फ एक जालसाजी थी या राजनीतिक तंत्र में कहीं गहरी साजिश?

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