भारत के दो पड़ोसी देश—नेपाल और बांग्लादेश इस समय अंतरिम सरकारों के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन दोनों के हालात और नीयत में जमीन-आसमान का अंतर है. जहां एक ओर नेपाल में जनता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए बदलाव को अंजाम तक पहुंचाया, वहीं बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता, टालमटोल और उथल-पुथल में उलझा हुआ नजर आ रहा है.
नेपाल में बीते सोमवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए जन आंदोलन ने महज दो दिनों में केपी ओली सरकार को गिरा दिया. जनता का एक ही संदेश था. भ्रष्टाचार अब नहीं चलेगा. आंदोलन के बाद देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. पद संभालते ही उन्होंने राष्ट्रहित में बड़ा कदम उठाते हुए आम चुनाव की तारीख की सिफारिश की. 21 मार्च 2026 को नेपाल में आम चुनाव होंगे. यह फैसला न केवल लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सुशीला कार्की किसी सियासी लालच में नहीं, बल्कि देशहित को प्राथमिकता दे रही हैं. नेपाल के युवाओं ने भी इस परिवर्तन को हाथों-हाथ लिया और अब वे देश को नवनिर्माण की राह पर ले जाने में जुटे हैं.
बांग्लादेश: फैसलों से ज्यादा बहानों की सरकार
वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश की स्थिति पूरी तरह विपरीत है. यहां मोहम्मद यूनुस नाम के अंतरिम सलाहकार बीते एक साल से सत्ता से चिपके बैठे हैं. अगस्त 2024 में आरक्षण के खिलाफ भड़के छात्रों के आंदोलन ने शेख हसीना सरकार को गिरा दिया था. उसके बाद से चुनावों की मांग उठ रही है, लेकिन यूनुस अब तक कोई स्पष्ट चुनाव तारीख तय नहीं कर पाए हैं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने बार-बार चुनाव की मांग की, कई दौर की बैठकें हुईं, लेकिन हर बार नतीजा शून्य रहा. दिसंबर 2025 तक चुनाव की मांग की गई थी, लेकिन यूनुस फरवरी 2026 तक की बात करते रहे हैं. वो भी बिना किसी पक्की तारीख के. इससे साफ है कि बांग्लादेश की अंतरिम सत्ता में नीयत की कमी साफ दिखती है.
बांग्लादेश की सियासी चालें और भारत विरोध
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सत्ता में आते ही कई विवादित फैसले लिए जैसे हिंदू समुदाय पर हो रहे हमलों को नजरअंदाज करना, जेल में बंद आतंकियों को रिहा करना, और कट्टरपंथी संगठनों से बैन हटाना. इतना ही नहीं, पाकिस्तान के साथ रिश्तों को मज़बूत करने की कोशिशें भी तेज़ हो गई हैं. वही पाकिस्तान जिसने बांग्लादेश की आज़ादी के समय उसके लोगों पर ज़ुल्म किए थे. इस सबके बीच भारत के हितों को लगातार नजरअंदाज किया गया है, जिससे साफ होता है कि मोहम्मद यूनुस की सरकार अपने एजेंडे के तहत काम कर रही है. जो न तो लोकतांत्रिक है और न ही पड़ोसी देशों के हित में.
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