इस देश की एक तिहाई आबादी ने ऑस्ट्रेलिया में बसने के लिए किया आवेदन, समुद्र में डूबने का है खतरा

    दक्षिण प्रशांत महासागर में बसा तुवालु, अब केवल एक द्वीपीय देश नहीं रह गया — यह जलवायु परिवर्तन की सबसे चुभती चेतावनी बन चुका है.

    One third of the population of this country applied to settle in Australia
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Internet

    तुवालु: दक्षिण प्रशांत महासागर में बसा तुवालु, अब केवल एक द्वीपीय देश नहीं रह गया — यह जलवायु परिवर्तन की सबसे चुभती चेतावनी बन चुका है. समुद्र का बढ़ता जलस्तर तुवालु की ज़मीन को हर साल निगल रहा है, और अब इस छोटे से देश की एक-तिहाई आबादी ने खुद को और अपने परिवारों को बचाने के लिए ऑस्ट्रेलिया में ‘क्लाइमेट वीजा’ के तहत शरण लेने का फैसला किया है.

    16 जून से शुरू हुई नई वीजा योजना

    ऑस्ट्रेलिया द्वारा शुरू की गई फालेपिली मोबिलिटी पाथवे वीजा योजना (Subclass 192 – ट्रीटी स्ट्रीम) विशेष रूप से तुवालु के नागरिकों के लिए बनाई गई है. यह दुनिया का पहला क्लाइमेट रेजिलिएंस आधारित वीजा कार्यक्रम है, जिसके तहत हर साल 280 लोगों को लॉटरी प्रणाली के जरिए स्थायी निवास दिया जाएगा.

    इस योजना का उद्देश्य उन लोगों को नई ज़िंदगी का मौका देना है जो जलवायु संकट से सबसे पहले और सबसे गहराई से प्रभावित हो रहे हैं.

    अब तक 1,100 से अधिक आवेदन

    2022 की जनगणना के अनुसार, तुवालु की कुल आबादी सिर्फ 10,643 है. और अब तक 1,124 लोगों ने इस वीजा के लिए आवेदन किया है, जिसमें उनके परिवारों को मिलाकर 4,052 लोग शामिल हैं. यानी देश की लगभग एक-तिहाई आबादी अब पलायन की ओर बढ़ रही है.

    2050 तक आधा तुवालु डूब जाएगा

    तुवालु के प्रधानमंत्री फेलेती तियो ने चेतावनी दी है कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो सदी के अंत तक देश का अधिकांश हिस्सा समुद्र में समा जाएगा. राजधानी फुनाफुति के कुछ हिस्से तो अब महज़ 20 मीटर चौड़े रह गए हैं — और यह देश समुद्र तल से औसतन केवल 6 मीटर ऊपर है.

    उनका कहना है, “हमारे पास पीछे हटने या ऊपर चढ़ने का कोई विकल्प नहीं है. हमारी जमीन ही हमारा सब कुछ है — और वो अब बची नहीं रही.”

    डिजिटल राष्ट्र बनने की दिशा में तुवालु

    तुवालु जानता है कि उसकी मिट्टी खो सकती है, लेकिन उसकी पहचान, संस्कृति और संप्रभुता नहीं. COP27 में तुवालु ने खुद को दुनिया का पहला "डिजिटल देश" बनाने की योजना पेश की थी. इसके तहत देश की सीमाओं, परंपराओं और सरकारी ढांचे को ऑनलाइन स्पेस में संरक्षित किया जा रहा है.

    ऑस्ट्रेलिया ने इस डिजिटल संप्रभुता को मान्यता भी दे दी है — ताकि तुवालु की पहचान तब भी ज़िंदा रहे जब उसकी जमीन समुद्र में खो जाए.

    ऑस्ट्रेलिया ने निभाई दोस्ती की ज़िम्मेदारी

    2023 में ऑस्ट्रेलिया और तुवालु के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया ने न केवल जलवायु शरणार्थियों को अपनाने का फैसला किया, बल्कि तुवालु की सैन्य सुरक्षा और क्षेत्रीय संप्रभुता की गारंटी भी दी.

    दुनिया को देखना होगा- तुवालु एक संकेत है

    तुवालु केवल एक द्वीप नहीं है — यह उन लाखों लोगों की कहानी है जो जलवायु परिवर्तन के पहले शिकार बन रहे हैं. यह संकट अब भविष्य का नहीं, वर्तमान का मुद्दा बन चुका है.

    क्लाइमेट संकट पर ठोस कदम उठा रहे

    जहां एक ओर ऑस्ट्रेलिया जैसे देश क्लाइमेट संकट को मान्यता देकर ठोस कदम उठा रहे हैं, वहीं कुछ शक्तिशाली राष्ट्र, जैसे अमेरिका (ट्रम्प प्रशासन के दौरान), अभी भी कुछ द्वीपीय देशों पर ट्रैवल बैन लगाने जैसे फैसले ले रहे हैं — जिससे इन जरूरतमंदों के विकल्प और सीमित हो जाते हैं.

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