मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका को खारिज किया, जिसमें याचिकाकर्ता ने राज्य का संक्षिप्त नाम "MP" या "मप्र" लिखने या बोलने पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिकाकर्ता, भोपाल निवासी वरिंदर कुमार नस्वा ने यह दावा किया कि राज्य का संवैधानिक नाम "मध्य प्रदेश" है, और संक्षिप्त नाम का प्रयोग सही नहीं है. हालांकि, अदालत ने इस याचिका को जनहित से संबंधित नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया.
याचिका का उद्देश्य और याचिकाकर्ता का तर्क
भोपाल निवासी वरिंदर कुमार नस्वा ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि राज्य का संक्षिप्त नाम "MP" या "मप्र" का प्रयोग बंद किया जाए. उनका कहना था कि राज्य का आधिकारिक और संवैधानिक नाम "मध्य प्रदेश" है, और इस नाम का संक्षिप्त रूप (जैसे "MP") का प्रयोग न केवल गलत है, बल्कि इससे राज्य की पहचान भी प्रभावित होती है. याचिकाकर्ता ने अदालत से यह अनुरोध किया था कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह पत्राचार, दस्तावेज़ और अन्य संवादों में "MP" या "मप्र" का उपयोग न करे. उनका मानना था कि यह राज्य के नाम का अपमान है.
अदालत का रुख और जवाब
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कई सवाल पूछे. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से जनहित की परिभाषा के बारे में सवाल किया, लेकिन वह इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए. कोर्ट ने कहा कि संक्षिप्त नामों का प्रयोग पूरी दुनिया में किया जाता है और यह लोगों की सुविधा के लिए होता है, न कि किसी राज्य या देश की पहचान को नुकसान पहुँचाने के लिए. अदालत ने यह भी कहा कि संक्षिप्त नामों का इस्तेमाल समय बचाने और संवाद को सरल बनाने के लिए किया जाता है. इससे किसी स्थान या राज्य की पहचान में कोई फर्क नहीं पड़ता.
छोटे नामों का वैश्विक उदाहरण
अदालत ने अपने निर्णय में उदाहरण देते हुए कहा कि छोटे नामों का उपयोग केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में भी किया जाता है. जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका को "USA", यूनाइटेड किंगडम को "UK", और अन्य देशों के नाम भी शॉर्ट फॉर्म में लिखे जाते हैं. भारतीय राज्यों के नामों के संदर्भ में भी ऐसा ही होता है. उदाहरण के तौर पर, आंध्र प्रदेश को "AP", हरियाणा को "HR", और उत्तर प्रदेश को "UP" कहा जाता है. ऐसे में "मध्य प्रदेश" के लिए "MP" का प्रयोग कोई नया या अपमानजनक कदम नहीं है.
अदालत ने की याचिकाकर्ता से दिलचस्प पूछताछ
सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने याचिकाकर्ता से कुछ दिलचस्प सवाल पूछे. कोर्ट ने पूछा कि वह जो वाहन इस्तेमाल करते हैं, उस पर किस राज्य का नंबर है. याचिकाकर्ता ने चंडीगढ़ का नंबर होने की बात स्वीकार की. फिर अदालत ने उसे पूछा, "आपकी जनहित याचिका में ऐसा क्या है जो जनहित में है? आप इसे साबित क्यों नहीं कर पा रहे?" इस तरह के सवालों ने याचिकाकर्ता को संकट में डाल दिया, क्योंकि वह अपने तर्कों को उचित रूप से प्रस्तुत नहीं कर पाए. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि याचिका में कोई वास्तविक जनहित नहीं था, और इसे खारिज कर दिया.
वाहन पंजीकरण से जुड़ी स्थिति
अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि जब वाहन के पंजीकरण में "MP" लिखा जाता है, तो इसका क्या मतलब होता है? यदि वाहन पर "MP" लिखा जा सकता है तो फिर इस पर विवाद क्यों हो? अदालत ने इस उदाहरण का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया कि संक्षिप्त नामों का प्रयोग किसी भी संदर्भ में गलत नहीं होता.
अदालत का फैसला
अदालत ने अंततः यह फैसला सुनाया कि संक्षिप्त नामों का प्रयोग पूरी दुनिया में किया जाता है और यह केवल भारत तक सीमित नहीं है. "MP" का उपयोग राज्य की पहचान को कम नहीं करता, बल्कि यह पहचान को और अधिक सुलभ और आसान बनाता है. याचिका में जनहित की कोई ठोस वजह नहीं थी, इसलिए इसे खारिज कर दिया गया.
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