नई दिल्ली/श्रीनगर: पूर्वी लद्दाख की ऊंची चोटियों और सर्द हवाओं के बीच भारत ने एक और रणनीतिक उपलब्धि हासिल कर ली है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से महज 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित न्योमा एयरफील्ड अब पूरी तरह से तैयार हो चुका है. इसे भारत के लिए केवल एक सैन्य ठिकाने के रूप में नहीं, बल्कि चीन के सामने खड़ी हो रही एक ठोस रणनीतिक दीवार के रूप में देखा जा रहा है.
बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने इसे अत्यधिक दुर्गम और संवेदनशील क्षेत्र में 13,710 फीट की ऊंचाई पर तैयार किया है, जो इसे दुनिया के सबसे ऊंचे फाइटर जेट ऑपरेशनल एयरबेस में से एक बना देगा. यह एयरफील्ड अक्टूबर 2025 तक सामान्य ऑपरेशनों के लिए और 2026 से फुल फाइटर जेट ऑपरेशंस के लिए पूरी तरह सक्षम होगा.
भारत की एयर पावर को मिला एक नया पंख
इस नए एयरबेस के चालू होने के बाद भारत के पास कारगिल, थोईस, दौलत बेग ओल्डी (DBO) जैसे अहम हवाई अड्डों के अलावा एक और ऐसा स्थान होगा, जो चीन सीमा के बेहद करीब है और जरूरत पड़ने पर वहां से फाइटर जेट और भारी मालवाहक विमान सीधे उड़ान भर सकेंगे.
BRO के अनुसार, न्योमा एयरफील्ड पर 2.7 किलोमीटर लंबा और 46 फुट चौड़ा रनवे तैयार किया गया है, जिस पर अत्याधुनिक सुखोई-30 MKI, मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमान भी उतर और उड़ान भर सकेंगे. इसके अलावा, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) टावर, हैंगर, क्रैश बे, वॉच टावर और सैनिकों के लिए आवासीय सुविधाएं भी लगभग पूरी हो चुकी हैं.
चीन की विस्तारवादी चालों का सटीक जवाब
भारत की यह तैयारी ऐसे समय में सामने आई है जब चीन बीते कई वर्षों से पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक अपनी हवाई ताकत को लगातार बढ़ा रहा है. चीन ने अपने हवाई ठिकानों पर न केवल रनवे विस्तार किए हैं, बल्कि वहां ईंधन, गोला-बारूद, मिसाइलें और ड्रोन जैसे साजो-सामान के भंडारण की नई सुविधाएं भी जोड़ी हैं.
चीन के होटन, काशगर, गरगुंसा, शिगात्से, न्यिंगची और होपिंग जैसे एयरबेस अब पूरी तरह से ऑपरेशनल हैं. इन स्थानों पर चीन ने अपने 5वीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट J-20, साथ ही बमवर्षक, टोही विमान, और ड्रोन तैनात किए हुए हैं. इनकी पहुंच सीधे भारत के उत्तरी और पूर्वोत्तर सीमाओं तक है.
पूर्वोत्तर और उत्तर भारत में एयर इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार
भारत ने पिछले तीन सालों में स्पष्ट कर दिया है कि वह चीन की हर चुनौती का जवाब उसी की भाषा में देगा, रणनीतिक तैयारी, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और तकनीकी बढ़त. न्योमा एयरफील्ड उसी रणनीति का हिस्सा है.
इसके अलावा, भारत अरुणाचल प्रदेश में भी तेजी से एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (ALG) विकसित कर रहा है. पासीघाट, मेचुका, वालोंग, टूटिंग, अलोंग और जीरो जैसे स्थलों पर भारतीय वायुसेना के लिए ढांचे खड़े किए जा रहे हैं.
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य, जो चीन से सटे हुए हैं, वहां भी भारतीय सेना और एयरफोर्स के लिए लैंडिंग ग्राउंड और हेलीपैड्स बनाए गए हैं. इन सभी का उद्देश्य है तेजी से ट्रूप मूवमेंट, रसद की आपूर्ति और आपातकालीन परिस्थितियों में सामरिक प्रतिक्रिया देना.
न्योमा: सामरिक दृष्टिकोण से क्यों है अहम?
न्योमा की सबसे बड़ी ताकत है इसकी भौगोलिक स्थिति. यह स्थान एलएसी से बेहद करीब है, जिससे भारतीय सेना को हरकत में आने के लिए अतिरिक्त समय नहीं गंवाना पड़ेगा. यदि जरूरत पड़ी, तो यह एयरफील्ड चीन की पीएलए एयरफोर्स के खिलाफ एक फ्रंटलाइन रेस्पॉन्स प्लेटफॉर्म का काम करेगा.
चीन से सीधी टक्कर: तैयारी का नया अध्याय
जहां एक ओर चीन द्विपक्षीय वार्ताओं में व्यस्त दिखता है, वहीं दूसरी ओर वह जमीन पर तेजी से सैन्य ढांचे तैयार कर रहा है. लेकिन भारत अब उसकी हर चाल को समझ चुका है और सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि पहले से तैयारी कर रहा है.
चीन की कोशिश होती है कि वह ऊंचाई वाले इलाकों में अपनी स्थिति को मजबूत करे और भारतीय इलाकों पर दबाव बनाए. लेकिन न्योमा एयरबेस की ऑपरेशनल स्थिति इस रणनीति को उलटने में सक्षम है.
2026 के बाद और आक्रामक होगी भारत की तैनाती
न्योमा एयरफील्ड के पूर्ण रूप से फाइटर ऑपरेशनल होने के बाद भारत को मिलेगी वह शक्ति, जिसकी इस ऊंचाई पर बहुत कमी थी. यह हवाई ठिकाना भारत को पूर्वी लद्दाख में न केवल रणनीतिक बढ़त देगा, बल्कि सैटलाइट सर्विलांस, ईव्सड्रॉपिंग, एयर डिफेंस और हमला—हर स्तर पर क्षमताएं बढ़ाएगा.
वायुसेना की योजना है कि यहां से जल्द ही C-130J सुपर हरक्यूलिस, सुखोई-30 MKI, राफेल जैसे आधुनिक विमानों की तैनाती शुरू की जाए. इसके अलावा, हवाई निगरानी के लिए AWACS सिस्टम, ड्रोन और रडारों की भी तैनाती की योजना है.
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