क्या छिपकली जहरीली होती है, दूध में गिरने पर क्या होता है? डरने से पहले ये सच जान लीजिए!

    बचपन से हमें यही सुनाया जाता रहा है कि दूध में छिपकली गिर जाए तो वो दूध जहरीला हो जाता है और अगर कोई गलती से वो दूध पी ले, तो उसकी जान तक जा सकती है.

    lizard poisonous if it falls in milk
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    हमारे घरों में छिपकलियों का दिखना आम बात है. कभी दीवार पर दौड़ती हैं, तो कभी अचानक किचन में नजर आ जाती हैं. लेकिन जैसे ही कोई कहता है कि "अरे, दूध में छिपकली गिर गई", पूरे घर में हड़कंप मच जाता है. बचपन से हमें यही सुनाया जाता रहा है कि दूध में छिपकली गिर जाए तो वो दूध जहरीला हो जाता है और अगर कोई गलती से वो दूध पी ले, तो उसकी जान तक जा सकती है. मगर क्या ये सच है या सिर्फ डराने वाली बातें हैं?

    आइए, इस धारणा को विज्ञान की कसौटी पर परखते हैं और समझते हैं कि दूध में छिपकली गिरने पर सच में क्या होता है.

    क्या छिपकली जहरीली होती है?

    सबसे पहले एक सीधी बात – भारत में आमतौर पर जो घरेलू छिपकलियां होती हैं, वे जहरीली नहीं होतीं. इनके शरीर में कोई भी ऐसी विष ग्रंथि नहीं होती, जिससे वो दूध या खाना जहरीला कर सकें. ये सिर्फ एक पुरानी, फैली हुई मान्यता है जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी मानते आ रहे हैं.

    हां, दुनिया में कुछ छिपकली प्रजातियां होती हैं जो जहरीली मानी जाती हैं जैसे गिला मॉन्स्टर और बीडेड लिज़र्ड, लेकिन ये भारत में नहीं पाई जातीं. भारत की छिपकलियां तो बस बिन बुलाए मेहमान हैं, जिनसे डरने की जरूरत नहीं है, बस साफ-सफाई का ध्यान रखना जरूरी है.

    दूध में छिपकली गिर जाए तो क्या सच में खतरा है?

    अगर दूध में छिपकली गिर जाए, तो दूध अपने आप विषैला नहीं हो जाता. असली खतरा छिपकली के शरीर पर मौजूद बैक्टीरिया से होता है. खासतौर पर साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया छिपकली की त्वचा पर मौजूद हो सकते हैं, जो दूध में मिलकर पेट खराब करने वाली बीमारियां जैसे उल्टी, दस्त, या पेट दर्द का कारण बन सकते हैं. लेकिन इससे जान को खतरा नहीं होता.

    अगर छिपकली काफी देर तक दूध में पड़ी रहे या मर जाए, तो दूध का सड़ना शुरू हो जाता है, जिससे वो पीने लायक नहीं रहता. और अगर छिपकली ने हाल ही में किसी जहरीले कीटनाशक को खाया हो, तो उसके शरीर से कुछ रसायन दूध में मिल सकते हैं – लेकिन ये मामले बहुत दुर्लभ हैं.

    दूध उबाल देने से क्या सब ठीक हो जाता है?

    भारत में दूध उबालने की परंपरा आम है. अगर दूध में छिपकली गिरने के बाद उसे अच्छे से उबाल दिया जाए (कम से कम 70 डिग्री सेल्सियस पर), तो बैक्टीरिया मर जाते हैं और दूध तकनीकी रूप से पीने लायक हो सकता है. लेकिन बात सिर्फ बैक्टीरिया की नहीं है – छिपकली के अवशेष, बाल, त्वचा, या दुर्गंध दूध में रह सकते हैं, जो इसे स्वास्थ्य और स्वाद दोनों के लिहाज से खराब बनाते हैं. इसलिए भले ही विज्ञान कहे कि उबालने से बैक्टीरिया मर जाते हैं, लेकिन समझदारी यही है कि ऐसा दूध फेंक देना चाहिए.

    क्या कभी किसी की मौत हुई है?

    इससे जुड़ी खबरें कभी-कभी अखबारों में छपती हैं, लेकिन जब गहराई से जांच की जाती है, तो ज्यादातर मामलों में दूध से जुड़ा बैक्टीरियल संक्रमण पाया जाता है, न कि जहर. यानी अगर कोई बीमार भी पड़ता है, तो वजह छिपकली नहीं, बल्कि उसमें लगे कीटाणु होते हैं. अब तक कोई पुख्ता वैज्ञानिक मामला ऐसा सामने नहीं आया है जिसमें ये साबित हो कि दूध में गिरी छिपकली ने किसी की जान ले ली हो.

    दुनिया में लोग छिपकली खाते भी हैं

    ये सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में लोग छिपकली खाते भी हैं और वो बड़े चाव से.

    • वियतनाम: यहां गांवों में मॉनिटर लिज़र्ड को फ्राई करके या सूप में खाया जाता है.
    • थाईलैंड: मसालेदार करी में छिपकली को पकाया जाता है.
    • फिलीपींस: यहां इसे ‘बायवाक’ कहते हैं और लोग इसे ग्रिल कर के खाते हैं.
    • नाइजीरिया, घाना: बड़े आकार की छिपकलियां यहां सूप और स्ट्यू में डाली जाती हैं.
    • मेक्सिको: यहां इगुआना को खाया जाता है, जिसे ‘ट्री का चिकन’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका स्वाद चिकन जैसा होता है.
    • ऑस्ट्रेलिया: आदिवासी समुदाय गोआना (एक बड़ी छिपकली) को आग में भूनकर खाते हैं.

    लेकिन भारत में ऐसा बिल्कुल आम नहीं है. हां, पूर्वोत्तर के कुछ आदिवासी समुदाय मॉनिटर लिज़र्ड का सेवन करते हैं, लेकिन ये देशभर में प्रचलित प्रथा नहीं है.

    अगर छिपकली काट ले तो?

    • भारत में पाई जाने वाली घरेलू छिपकलियां अगर काट भी लें तो डरने की जरूरत नहीं है.
    • हल्का दर्द या सूजन हो सकती है, लेकिन जान को कोई खतरा नहीं होता.
    • उनके मुंह में भी बैक्टीरिया हो सकते हैं, इसलिए काटने वाली जगह को तुरंत साबुन-पानी से धो लें.
    • एंटीसेप्टिक लगाएं और अगर सूजन या जलन बढ़ती है, तो डॉक्टर से संपर्क करें.

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