Who Is Rajendra Chol: जब अतीत की गूंज वर्तमान में सुनाई देती है, तब कोई साधारण क्षण नहीं बनता, वह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण बन जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तमिलनाडु दौरा महज एक प्रशासनिक यात्रा नहीं, बल्कि भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्वाभिमान को नमन करने का एक अवसर भी है.
ब्रिटेन और मालदीव की चार दिवसीय राजकीय यात्रा पूरी करने के बाद शनिवार को पीएम मोदी तमिलनाडु पहुंचे, जहां उन्होंने पहले दिन ₹4800 करोड़ की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया. लेकिन इस यात्रा की सबसे भावनात्मक और ऐतिहासिक झलक रविवार को दिखेगी, जब वे तिरुचिरापल्ली जिले के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में आयोजित तिरुवथिरई महोत्सव में भाग लेंगे.
यह समारोह सिर्फ एक धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, यह राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं जयंती और उनके महान समुद्री अभियानों की स्मृति में मनाया जा रहा है. आइए जानें, क्यों यह क्षण इतिहास और आधुनिक भारत दोनों के लिए इतना महत्वपूर्ण है.
वह सम्राट जिसने समुद्र को भी लांघ लिया
राजेंद्र चोल प्रथम सिर्फ एक शासक नहीं थे, वे विजन और शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे. उन्होंने 11वीं शताब्दी में चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत से आगे ले जाकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना परचम फहराया. उनकी सैन्य और नौसैनिक रणनीति ने पूरे उपमहाद्वीप के इतिहास को नई दिशा दी.
उनके विजय अभियानों की परिणति थी, गंगईकोंडा चोलपुरम, जिसे उन्होंने अपनी राजधानी बनाया. इसका अर्थ ही है, "वह जिसने गंगा को जीत लिया." यहां उन्होंने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो आज भी उनकी दूरदर्शिता, आस्था और प्रशासनिक कौशल का प्रमाण है.
जहाँ पत्थरों में इतिहास साँस लेता है
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है. इसकी भव्य मूर्तियां, प्राचीन शिलालेख, चोल कांस्य की कलाकृतियां और स्थापत्य कला भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का गौरवशाली अध्याय हैं.
तिरुवथिरई महोत्सव, जिसे चोल शासकों ने उत्साहपूर्वक मनाया, तमिल शैव भक्ति परंपरा का जीवंत उदाहरण है. यह महोत्सव न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि तमिल गौरव, संस्कृति और अध्यात्म का उत्सव है, जिसे नयनमार संतों की कविताओं ने भी अमर किया.
जब चोलों की नौसेना ने रचा समुद्री इतिहास
राजेंद्र चोल प्रथम की नौसेना इतनी संगठित और शक्तिशाली थी कि उन्होंने इंडोनेशिया के श्रीविजय साम्राज्य के राजा विजयतुंगवर्मन को पराजित कर इतिहास रच दिया. 14 अलग-अलग बंदरगाहों से एकसाथ हमला कर उन्होंने श्रीविजय की ताकत को झकझोर दिया. उनकी युद्धनौकाओं में हाथी और विशाल पत्थर फेंकने वाली मशीनें भी ले जाई जाती थीं, यह दर्शाता है कि भारत उस युग में भी समुद्री शक्ति के रूप में कितना सक्षम था.
ये भी पढ़ें- हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़, 6 श्रद्धालुओं की मौत, कई घायल