1975 KM/h रफ्तार, आधुनिक नेविगेशन और अटैक सिस्टम... जानें चूरू में क्रैश हुए जगुआर फाइटर जेट की ताकत

    राजस्थान के चूरू जिले में मंगलवार सुबह एक जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी, जिसके बाद यह पुष्टि हुई कि यह भारतीय वायुसेना का एक जगुआर फाइटर जेट था, जो तकनीकी खराबी के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुआ.

    Know the power of the Jaguar fighter jet that crashed in Churu
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Internet

    नई दिल्ली: राजस्थान के चूरू जिले में मंगलवार सुबह एक जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी, जिसके बाद यह पुष्टि हुई कि यह भारतीय वायुसेना का एक जगुआर फाइटर जेट था, जो तकनीकी खराबी के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुआ. इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न उठाया है कि क्या वायुसेना में दशकों से सेवा दे रहे जगुआर जेट्स अब सक्रिय संचालन से हटाए जाने की ओर बढ़ रहे हैं?

    क्या है जगुआर की भूमिका?

    जगुआर एक ग्राउंड-अटैक एयरक्राफ्ट है, जिसे विशेष रूप से दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमलों और युद्ध में एयर सपोर्ट देने के लिए डिजाइन किया गया था. इसे ब्रिटेन और फ्रांस के संयुक्त सहयोग से विकसित किया गया और भारत ने इसे 1979 में अपने बेड़े में शामिल किया.

    भारतीय वायुसेना में इसे ‘शमशेर’ नाम दिया गया, जो इसकी आक्रामक क्षमताओं और सामरिक महत्व को दर्शाता है. जगुआर का प्राथमिक उद्देश्य है दुश्मन की सीमा में गहराई तक प्रवेश कर कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए बमबारी करना.

    तकनीकी: स्पीड, स्ट्राइक और सटीकता

    • अधिकतम रफ्तार: लगभग 1975 किमी/घंटा, जो माक-1.6 के बराबर है.
    • उड़ान की विशेषता: यह विमान बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है, जिससे यह दुश्मन के रडार से बचने में सक्षम रहता है.
    • हथियार प्रणाली: यह लेजर-गाइडेड बम, AS-30L मिसाइल, और 30mm के कैनन से लैस हो सकता है.
    • अपग्रेड: समय के साथ इसमें ‘DARIN III’ जैसे नेविगेशन और टारगेटिंग सिस्टम जोड़े गए हैं, जिससे इसकी क्षमता में वृद्धि हुई है.

    ऐतिहासिक भूमिका: कारगिल युद्ध में योगदान

    1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ में जगुआर जेट्स ने रणनीतिक भूमिका निभाई थी. इन विमानों ने दुर्गम पहाड़ी इलाकों में दुश्मन के बंकरों और आपूर्ति मार्गों को लेजर-गाइडेड बमों से निशाना बनाया. इस ऑपरेशन में जगुआर की सटीकता और सामरिक दक्षता ने इसे वायुसेना की युद्ध नीति में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया.

    वर्तमान स्थिति और परिचालन उपयोग

    हालांकि जगुआर जेट्स की औसत आयु 40 वर्ष से अधिक हो चुकी है, लेकिन इन्हें कई बार अपग्रेड किया गया है. आज भी ये विमान सीमावर्ती क्षेत्रों में गश्त, अभ्यास और सामरिक मिशनों के लिए उपयोग में लाए जाते हैं.

    वायुसेना के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, इन विमानों की तकनीकी सीमाओं को देखते हुए इन्हें चरणबद्ध तरीके से सेवा से हटाने की योजना है, लेकिन तब तक ये अपने दायित्वों को पूरी दक्षता से निभा रहे हैं.

    दुर्घटनाएं और विमान की विश्वसनीयता

    जगुआर जैसे पुराने विमानों के साथ तकनीकी खराबी की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन ऐसे विमानों का रखरखाव और प्रशिक्षण भारतीय वायुसेना के उच्च मानकों के अनुरूप होता है. चूरू की घटना की विस्तृत जांच चल रही है.

    भविष्य की दिशा

    भारतीय वायुसेना अब अपनी क्षमताओं को उन्नत करने के लिए राफेल, तेजस MK-1A, और भविष्य के AMCA जैसे फाइटर जेट्स पर ध्यान केंद्रित कर रही है. ये विमान आधुनिक एवियोनिक्स, स्टेल्थ क्षमताओं और मल्टीरोल तकनीक से लैस हैं.

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