जब नेहरू ने अटल बिहारी को लेकर की भविष्यवाणी, 40 साल बाद हुई सच, लालू यादव ने याद दिलाई याद तो हंस पड़ा संसद

    Atal Bihari Vajpayee Death anniversary: आज जब हम संसद के शोरगुल, वाकयुद्ध और आरोप-प्रत्यारोप के माहौल को देखते हैं, तो बरबस ही मन एक सवाल करता है कि क्या लोकतंत्र का यह मंदिर सच में संवाद का मंच रह गया है, या अब यह सिर्फ सियासी संघर्ष का अखाड़ा बन चुका है?

    jawahar lal nehru and atal bihari vajpayee special story in parliament
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    Atal Bihari Vajpayee Death anniversary: आज जब हम संसद के शोरगुल, वाकयुद्ध और आरोप-प्रत्यारोप के माहौल को देखते हैं, तो बरबस ही मन एक सवाल करता है कि क्या लोकतंत्र का यह मंदिर सच में संवाद का मंच रह गया है, या अब यह सिर्फ सियासी संघर्ष का अखाड़ा बन चुका है? लेकिन समय की धूल के पीछे एक ऐसा दौर भी था, जब मतभेद होते थे, लेकिन मर्यादा नहीं टूटती थी. जब विरोध होता था, पर व्यक्तिगत हमले नहीं. और इसी दौर के दो ऐतिहासिक किरदार थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी.

    आज जब हम अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हैं, तो उनके संसदीय जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प और प्रेरणादायक किस्सा सामने आता है, एक किस्सा जो बताता है कि कैसे विचारधाराओं की दूरी के बावजूद, सम्मान की डोर कभी नहीं टूटी.

    "यह युवक एक दिन प्रधानमंत्री बनेगा"

    साल था 1957. अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में अपनी शुरुआती उपस्थिति दर्ज की थी. धाराप्रवाह हिंदी, सटीक तर्क और गहन राजनीतिक दृष्टिकोण से वे चर्चा में आने लगे थे. तब के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू उनके भाषणों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक विदेशी मेहमान से परिचय कराते हुए कहा, "यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा." नेहरू की ये बात भविष्य की आहट थी, जो लगभग 40 साल बाद सच हुई, जब वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने.

    मतभेद, पर सम्मान बना रहा

    नेहरू और वाजपेयी के विचार अक्सर टकराते थे, बहसें तीखी होती थीं. लेकिन दोनों के बीच सम्मान की सीमा रेखा कभी पार नहीं हुई. अटल जी ने स्वयं संसद में एक भाषण के दौरान कहा था कि वे जब सदन में नए थे, तो पीछे की बेंच पर बैठते थे, पर धीरे-धीरे अपनी जगह बना ली. एक और रोचक किस्सा तब का है जब वाजपेयी विदेश मंत्री बने. उन्होंने नोटिस किया कि साउथ ब्लॉक में नेहरू जी की तस्वीर हटा दी गई है. उन्होंने बिना किसी संकोच के सवाल किया और वह तस्वीर फिर से लगा दी गई. यह बताता है कि राजनीतिक मतभेद होने के बावजूद वे पूर्व नेताओं का सम्मान करना नहीं भूले.

    व्यक्तिगत आलोचना नहीं, विचारों पर चोट

    एक बार अटल जी ने पंडित नेहरू से कहा था, "आपका मिला-जुला व्यक्तित्व है... आप में चर्चिल भी हैं और चेम्बरलेन भी. लेकिन नेहरू ने इसे निजी आलोचना नहीं माना, बल्कि एक शाम मुलाकात के दौरान मुस्कुराते हुए कहा, "आपने बहुत अच्छा भाषण दिया." यही वो उच्चता थी जो उस दौर की राजनीति को आज के मुकाबले कहीं अधिक गरिमामय बनाती थी.

    राजनीति में हास्य और आत्मीयता

    राजनीति में व्यंग्य और हंसी की भी बड़ी भूमिका रही है. एक बार राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने संसद में अटल जी से चुटकी लेते हुए कहा, "नेहरू जी ने कहा था कि अटल प्रधानमंत्री बनेगा, एक बार कहा था… लेकिन आप दो बार बन गए! अब मुल्क की जान छोड़िए." सदन ठहाकों से गूंज उठा, और खुद अटल जी भी हंस पड़े.

    एक नेता, जिसकी राजनीति में आदर्श जीवित था

    अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा आदर्शों से भरी रही. वे तीन बार प्रधानमंत्री बने, पहली बार थोड़े समय के लिए 1996 में, फिर 1998 में, और तीसरी बार 1999 में. वे पंडित नेहरू के बाद पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने दो बार लगातार कार्यकाल पूरा किया. उनका व्यक्तित्व राजनीति से ऊपर उठकर था, विरोधियों के लिए भी सम्मान और आलोचना में भी विनम्रता. 16 अगस्त 2018 को उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन भारतीय लोकतंत्र को मर्यादित राजनीति का जो सबक वे दे गए, वह हमेशा ज़िंदा रहेगा.

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