मान लीजिए किसी सुबह उठते ही आपको पता चले कि देश की सबसे खुफिया एजेंसियों से जुड़े नाम, पहचान और मिशन अब दुश्मनों के हाथ लग चुके हैं. सिर्फ किसी जासूसी फिल्म में नहीं, बल्कि असल ज़िंदगी में. जो लोग चुपचाप देश की सीमाओं से बाहर जान जोखिम में डालते हैं, अब उनकी जान ही खतरे में है. कुछ ऐसा ही ब्रिटेन में हुआ — और इसका झटका सिर्फ वहीं नहीं, भारत जैसे देशों तक भी पहुंचा है.
ब्रिटेन की सबसे बड़ी डेटा भूल
इस मामले को ‘अफगान डेटा लीक’ कहा जा रहा है. ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय से जुड़ी एक बेहद संवेदनशील फाइल, जिसमें अफगानिस्तान में चल रहे खुफिया अभियानों की डिटेल थी, इंटरनेट पर लीक हो गई. शुरुआत में सरकार ने इसे दबाने की कोशिश की. कोर्ट ने मीडिया को रिपोर्टिंग से रोक दिया. लेकिन जब मीडिया को आखिरकार खुलकर बोलने की इजाज़त मिली, तब पूरी दुनिया को एहसास हुआ कि मामला कितना बड़ा है.
इस फाइल में सिर्फ ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी. इसमें उन जासूसों, स्पेशल फोर्स कमांडो और खुफिया अधिकारियों के नाम और पहचान थीं जो गुप्त मिशनों पर तैनात थे. कई अब भी विदेशों में एक्टिव हो सकते हैं.
गलती से या लापरवाही से?
इस लीक का तरीका उतना ही डरावना है जितना इसका असर. रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक आंतरिक डिजिटल सिस्टम या सर्वर में चूक के चलते ये डाटा बाहर चला गया. इसे किसी ने हैक नहीं किया — ये प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा था. यानी यह हमला बाहर से नहीं, अंदर से हुआ.
ब्रिटेन के डिफेंस सेक्रेटरी जॉन हीली को आखिरकार संसद में सामने आकर कबूल करना पड़ा कि ये गलती हुई है और सीनियर अधिकारियों, सैनिकों, यहां तक कि गुप्त एजेंसी MI6 के एजेंटों की जानकारी भी बाहर चली गई है.
MI5, MI6, SAS — अब सबको खतरा
The Sun अखबार ने अगली ही सुबह साफ कर दिया कि लीक में शामिल लोग सिर्फ सेना या प्रशासन के नहीं, बल्कि MI5, MI6 जैसी खुफिया एजेंसियों और ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस (SAS) के अधिकारी भी हैं.
यह सिर्फ नाम लीक होने की बात नहीं है. यह उन लोगों के जीवन की सुरक्षा पर सीधा खतरा है जो गुप्त मिशनों में शामिल रहे हैं. उनकी लोकेशन, पहचान, और पिछले ऑपरेशनों की डिटेल अब शायद उन लोगों तक पहुंच चुकी है जिनसे वे लड़ते रहे हैं.
जब कोर्ट ने खोला दरवाज़ा
जैसे ही लीक की बात मीडिया तक पहुंची, कई ब्रिटिश न्यूज़ हाउस कोर्ट पहुंचे. उनका सवाल साफ था: जब सरकार ने खुद स्वीकार कर लिया है कि डेटा लीक हुआ है, तो जनता को सच्चाई बताने से क्यों रोका जा रहा है? जज मिस्टर जस्टिस चेम्बरलेन ने बंद कमरे में सुनवाई की, फिर फैसला सुनाया — हां, अब मीडिया इस खबर को रिपोर्ट कर सकता है. यह एक बड़े बदलाव का संकेत था. सरकार जो छिपा रही थी, वह अब सबके सामने था.
लीक का मतलब: मिशन एक्सपोज़, एजेंट्स डेंजर में
ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां हमेशा से दुनिया की सबसे ताकतवर और सतर्क इकाइयों में गिनी जाती रही हैं. इन एजेंसियों में काम करने वालों की पहचान अक्सर उनके परिवारों को भी नहीं बताई जाती. और अब, एक गलती की वजह से वो जानकारी शायद उन लोगों के पास पहुंच गई है जिन्हें रोकने के लिए ये एजेंट दुनिया के अलग-अलग कोनों में तैनात थे.
इससे न सिर्फ एजेंट्स की सुरक्षा खतरे में है, बल्कि ब्रिटेन के पुराने मिशनों की गोपनीयता भी भंग हो चुकी है. ये लीक दुश्मनों को कई स्तर पर जानकारी दे सकता है — कैसे ब्रिटेन ऑपरेशन प्लान करता है, कौन कहां तैनात था, किन देशों में मिशन चल रहे थे.
भारत के लिए क्यों है यह सीधा सबक
अब ज़रा रुक कर सोचिए. क्या हो अगर भारत में ऐसा कुछ हो जाए? अगर किसी लापरवाही की वजह से RAW या NSG से जुड़े अफसरों की पहचान और काम इंटरनेट पर आ जाए? भारत भी अफगानिस्तान, मिडिल ईस्ट और कई संवेदनशील इलाकों में लंबे समय से गुप्त अभियानों में सक्रिय रहा है. हमारे पास भी ऐसे ही नाम और डिटेल्स हैं जो अगर लीक हो जाएं, तो सिर्फ एक स्कैंडल नहीं — एक राष्ट्रीय सुरक्षा संकट बन जाएगा.
डिजिटल सुरक्षा: अब मज़ाक नहीं, ज़रूरत है
यह मामला दिखाता है कि आज की तारीख में डिजिटल सिस्टम की सुरक्षा सिर्फ एक आईटी डिपार्टमेंट का काम नहीं है. यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सवाल है. सरकारें अक्सर मानती हैं कि फाइलें सुरक्षित हैं, पासवर्ड लगा है, सिस्टम इन-हाउस है — लेकिन अगर कोई लापरवाही या अंदरूनी चूक हो जाए, तो तबाही बस एक क्लिक दूर होती है.
ब्रिटेन की भूल, बाकी दुनिया की आंख खोलनी चाहिए
किसी देश की ताकत सिर्फ उसके हथियारों से नहीं, उसकी जानकारी की सुरक्षा से भी होती है. ब्रिटेन के साथ जो हुआ, वह बाकी देशों के लिए चेतावनी है — खासकर उन देशों के लिए जो वैश्विक मंच पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. भारत जैसे देशों को अब और भी सख्त डिजिटल और डेटा सुरक्षा प्रोटोकॉल की ज़रूरत है. सिर्फ जासूसी एजेंसियों में नहीं, मंत्रालयों, रक्षा अनुसंधान, यहां तक कि अफसरों की ट्रेनिंग तक में.
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