Indonesia Crisis: दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया के कई प्रमुख शहरों में सोमवार को छात्र सड़कों पर उतर आए. पिछले हफ्ते देश में भड़की हिंसा और उसकी गंभीरता के बावजूद युवाओं ने सरकार की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया. यह हिंसा बीते दो दशकों में सबसे बड़ी मानी जा रही है, जिसमें आठ लोगों की मौत हो चुकी है. आइए जानते हैं कि आखिर यह हिंसा क्यों भड़की और इंडोनेशिया में हालात अभी भी क्यों तनावपूर्ण बने हुए हैं.
करीब दस दिन पहले देश में एक बड़ी खबर आई, जिसने आम जनता का गुस्सा फूटा दिया. यह खुलासा हुआ कि इंडोनेशिया के 580 सांसदों को उनकी नियमित वेतन के अलावा हर महीने लगभग 50 लाख रुपिया (करीब 3,075 डॉलर) मकान भत्ते के रूप में मिल रहे हैं. यह राशि राजधानी जकार्ता के न्यूनतम वेतन से करीब दस गुना अधिक है. देश में बढ़ती महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी के बीच इस खबर ने आग में घी का काम किया. जनता ने इसे अपने साथ अन्याय माना और विरोध प्रदर्शन तेज हो गए.
राष्ट्रपति की चीन यात्रा भी रद्द
इस राजनीतिक संकट ने राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. वे केवल एक साल पहले ही सत्ता में आए हैं. हाल ही में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने दक्षिण तंगेरांग में वित्त मंत्री मुलयानी इंद्रावती समेत कई सांसदों के घरों पर हमला किया. इस कारण राष्ट्रपति को अपनी लंबित चीन यात्रा को रद्द करना पड़ा. इससे पहले 29 अगस्त को राजधानी जकार्ता में भारी प्रदर्शन हुए, जिनमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं. एक वीडियो में एक डिलीवरी राइडर को पुलिस की बख्तरबंद गाड़ी के नीचे दबते भी दिखाया गया.
सुरक्षा बलों के सख्त कदम, फिर भी जारी प्रदर्शन
देशभर में अब तक 1,200 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है और 700 से अधिक लोग हिंसक झड़पों में घायल हुए हैं. इन विरोध प्रदर्शनों के कारण लगभग 28 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान भी हुआ है. इसके बावजूद, भारी सैन्य गश्त के बीच भी जकार्ता, योग्याकार्ता, बांडुंग और मकास्सर जैसे बड़े शहरों में छात्र सड़कों पर उतर रहे हैं. जकार्ता की मुख्य सड़कों पर सेना तैनात है. छात्र ऑनलाइन क्लासेस लेने के लिए मजबूर हैं, वहीं सरकारी और निजी कार्यालयों के कर्मचारियों को घर से काम करने के निर्देश दिए गए हैं.
क्या होगा आगे?
यह आंदोलन इंडोनेशिया की राजनीतिक व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष का संकेत है. देश की जनता अब व्यवस्था में सुधार की मांग जोर-शोर से कर रही है. सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वह न केवल शांति बनाए रखे, बल्कि सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को भी कम करे. सुरक्षा बलों की कड़ी कार्रवाई के बावजूद विरोध जारी है, और अब इस स्थिति से निपटने की जिम्मेदारी सीधे राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो के कंधों पर आ गई है. देश में स्थिरता वापस लाने के लिए उनका कोई ठोस कदम उठाना अनिवार्य हो गया है.
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