'रण' और 'संवाद' के बीच भारत की रणनीति, राजनाथ सिंह ने बताया भविष्य के युद्ध का चेहरा

    Ran-Samvad 2025: जब देश की सीमाओं की बात हो, तो सिर्फ बंदूकें नहीं, विचार भी हथियार बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही संदेश लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को मध्य प्रदेश के महू में आयोजित रण-संवाद 2025 कार्यक्रम में पहुंचे.

    India's strategy between battle and dialogue Rajnath Singh told the face of future war
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    Ran-Samvad 2025: जब देश की सीमाओं की बात हो, तो सिर्फ बंदूकें नहीं, विचार भी हथियार बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही संदेश लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को मध्य प्रदेश के महू में आयोजित रण-संवाद 2025 कार्यक्रम में पहुंचे.

    यह कोई साधारण मंच नहीं था, यह वो जगह थी जहां रण और संवाद, यानी युद्ध और विचारों की टकराहट को लेकर एक गहरी चर्चा हुई. और इसी चर्चा के केंद्र में था, भविष्य का युद्ध कैसा होगा? भारत की तैयारी क्या है? और क्यों संवाद, संघर्ष से पहले भी ज़रूरी है और बाद में भी?

    “हम पहले हमला नहीं करते, लेकिन जवाब ज़रूर देंगे”

    राजनाथ सिंह ने अपने भाषण की शुरुआत ‘रण-संवाद’ शब्द की गहराई समझाते हुए की. उन्होंने कहा, “जहां युद्ध है, वहां संवाद कैसे हो सकता है?” लेकिन भारत का इतिहास यही दिखाता है कि हमने हमेशा संवाद को प्राथमिकता दी है, चाहे महाभारत हो या आज का भू-राजनीतिक परिदृश्य. उन्होंने दो टूक कहा, “भारत कभी पहले हमला नहीं करता, लेकिन अगर कोई हमें चुनौती देता है, तो हम जवाब देने में भी पीछे नहीं रहते, और वो भी पूरी ताकत के साथ.”

    भविष्य के युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं

    राजनाथ सिंह ने बेहद साफ लहजे में बताया कि आने वाले समय में युद्ध की परिभाषा बदल चुकी है. अब यह सिर्फ सेनाओं की भिड़ंत नहीं होगी, बल्कि साइबर युद्ध, AI, ड्रोन टेक्नोलॉजी, डेटा और अंतरिक्ष युद्ध का समय होगा.

    उन्होंने कहा, “अब युद्ध ज़मीन, हवा या समुद्र तक सीमित नहीं रहेगा. अब यह अंतरिक्ष और साइबरस्पेस तक फैल गया है. ऐसे में हमें केवल हथियार नहीं, सटीक रणनीति और तकनीकी ताकत भी चाहिए.”

    स्पेस से लेकर साइबर तक, हर मोर्चे पर तैयार रहना होगा

    रक्षा मंत्री ने कहा कि युद्ध के पारंपरिक मैदानों से आगे बढ़कर अब दुश्मन डेटा, GPS, सैटेलाइट और डिजिटल नेटवर्क पर वार कर सकता है. ऐसे में अब सिर्फ बंदूकें और टैंक नहीं, बल्कि डिजिटल सुरक्षा कवच की भी उतनी ही ज़रूरत है. उन्होंने 'एक्टिव स्ट्रैटेजी' की बात करते हुए कहा कि भारत को केवल रक्षात्मक नहीं, आक्रामक तैयारी भी रखनी होगी, ताकि हम किसी भी संभावित खतरे को समय से पहले पहचान सकें और जवाब दे सकें.

    भारत की सांस्कृतिक रणनीति

    महाभारत का उदाहरण देते हुए राजनाथ सिंह ने बताया कि संवाद हमारे DNA में है. भगवान श्रीकृष्ण का शांति दूत बनकर कौरवों से बात करना इस बात का संकेत है कि भारत कभी युद्ध के पक्ष में नहीं रहा, लेकिन जब बात सम्मान और सुरक्षा की आई है, तो हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने साफ कहा, “भारत युद्ध नहीं चाहता, लेकिन आत्म-समर्पण भी नहीं करेगा. आने वाला समय नई तकनीक, तेज़ निर्णय और सटीक रणनीति का होगा, और भारत इसके लिए पूरी तरह तैयार है.”

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