नई दिल्लीः एक दौर था जब भारत हथियारों और सैन्य उपकरणों के लिए पूरी तरह से विदेशी सप्लायर्स पर निर्भर हुआ करता था. लेकिन अब वही भारत दुनिया के लिए एक भरोसेमंद रक्षा आपूर्तिकर्ता बन चुका है. आज जब यूक्रेन युद्ध और वैश्विक संकटों के कारण पश्चिमी देशों की सप्लाई चेन चरमरा रही है, तब भारत अपने उत्पादन और रणनीतिक क्षमताओं के बलबूते पर दुनिया को गोला-बारूद की आपूर्ति कर रहा है. खासकर 155 मिमी के तोप के गोलों की बात करें, तो भारत इस क्षेत्र में एक ऐसा विकल्प बनकर उभरा है जिसकी कीमत, क्वालिटी और डिलीवरी – तीनों मामलों में बराबरी करना पश्चिमी देशों के लिए संभव नहीं है.
महज 300 से 400 डॉलर में तोप के गोले
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 155 मिमी तोप के गोले महज 300 से 400 डॉलर में बना रहा है, जो पश्चिमी देशों में बनने वाले इसी तरह के गोले की कीमत के मुकाबले एक तिहाई से भी कम है. यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप के देश अब भारत की ओर देख रहे हैं. ये सिर्फ एक व्यावसायिक सफलता नहीं है, बल्कि रणनीतिक विश्वास का भी संकेत है कि भारत अब वैश्विक रक्षा सप्लाई चेन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है.
भारत सरकार ने 2029 तक हथियारों के निर्यात को 6 अरब डॉलर के पार ले जाने का लक्ष्य रखा है. हालांकि पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 3.5 अरब डॉलर के हथियार निर्यात किए, जो लक्ष्य से 30 प्रतिशत कम जरूर रहे, लेकिन इसकी तुलना अगर पिछले दशक से करें, तो बढ़त चौंकाने वाली है. 2013-14 में भारत का रक्षा निर्यात महज 1,940 करोड़ रुपये था, जबकि 2023-24 में यह आंकड़ा 21,083 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. यह लगभग 31 गुना वृद्धि है और ये बताता है कि भारत अब केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी सैन्य समाधान तैयार कर रहा है.
निजी कंपनियों की भागीदारी भी काफी अहम
इस तेजी से बढ़ते उद्योग में निजी कंपनियों की भागीदारी भी काफी अहम रही है. SMPP जैसी कंपनियां, म्यूनिशन इंडिया जैसी सरकारी इकाइयों और अदानी डिफेंस जैसी बड़ी कंपनियों ने अपनी उत्पादन क्षमताओं को इस कदर बढ़ा दिया है कि उन्हें विदेशी ऑर्डर मिलने लगे हैं. SMPP के सीईओ आशीष कंसल का कहना है कि आज की परिस्थिति ने गोला-बारूद की भारी मांग पैदा कर दी है और भारतीय उद्योग इस मौके का भरपूर उपयोग कर रहा है.
भारत अब सिर्फ छोटे हथियार या उनके पार्ट्स तक सीमित नहीं है. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलें, तेजस फाइटर जेट, आकाश मिसाइल सिस्टम, हल्के हेलीकॉप्टर, नौसैनिक पोत, सर्विलांस सिस्टम और रडार — ये सब भारत की उस नई पहचान के प्रतीक हैं, जो उसे एक सैन्य तकनीक आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित कर रहे हैं. ब्रह्मोस मिसाइल के लिए फिलीपींस से 375 मिलियन डॉलर की डील और आकाश सिस्टम को लेकर संभावित 200 मिलियन डॉलर की डील जैसे उदाहरण ये दिखाते हैं कि अब भारत रक्षा क्षेत्र में वैश्विक बातचीत की मेज पर सिर्फ बैठा नहीं है, बल्कि निर्णायक भूमिका निभा रहा है.
रक्षा विश्लेषक और पूर्व नौसेना कमांडर गौतम नंदा का मानना है कि भारत की उत्पादन क्षमता अब पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत है और इसका एक बड़ा कारण है भारत की भौगोलिक स्थिति और रणनीतिक चुनौतियाँ. चीन और पाकिस्तान के साथ लंबे समय से जारी तनाव ने भारत को न केवल आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि उसे एक रणनीतिक एक्सपोर्टर के रूप में भी तैयार किया है.
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