नई दिल्ली/मॉस्को: वैश्विक राजनीति के बदले समीकरणों के बीच भारत अपनी रक्षा नीति को लेकर एक स्वतंत्र और रणनीतिक रुख पर कायम है. हाल ही में अमेरिका की ओर से भारत के रूस से हथियारों की खरीद पर असंतोष व्यक्त किया गया, लेकिन इसके बावजूद भारत की स्थिति स्पष्ट है: रक्षा सहयोग राष्ट्रीय हित से जुड़ा मुद्दा है, न कि किसी वैश्विक शक्ति की स्वीकृति से तय होने वाला विषय.
यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम में अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने कहा कि भारत द्वारा रूस से सैन्य हार्डवेयर खरीदना वॉशिंगटन को 'परेशान करता है'. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-रूस रक्षा साझेदारी केवल हथियार खरीद तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास, विश्वसनीयता, तकनीकी साझेदारी और रणनीतिक संतुलन पर आधारित है.
यहां हम उन पांच प्रमुख कारणों को समझते हैं, जिनकी वजह से भारत निकट भविष्य में रूस से रक्षा खरीद को बंद नहीं करेगा:
1. भरोसा और कठिन समय में साथ
1960 के दशक में जब भारत को चीन और पाकिस्तान से लगातार सैन्य खतरे का सामना था, पश्चिमी देशों ने भारत को आधुनिक हथियार देने से इनकार कर दिया. ऐसे समय में सोवियत संघ ने MiG-21, पनडुब्बियां, और मिसाइल बोट्स जैसी प्रमुख क्षमताएं भारत को उपलब्ध कराईं. 1971 के युद्ध के दौरान जब अमेरिका और ब्रिटेन ने पाकिस्तान का समर्थन किया, तो सोवियत नौसेना ने भारतीय हितों की रक्षा के लिए समुद्री समर्थन भेजा. यह विश्वास रूसी सहयोग की नींव बन गया.
2. सोवियत विरासत को रूस ने निभाया
सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस ने भारत के साथ संबंधों को न केवल बनाए रखा, बल्कि तकनीकी साझेदारी के नए आयाम जोड़े. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल प्रणाली इसका सबसे सशक्त उदाहरण है. यह भारत की सटीक और त्वरित स्ट्राइक क्षमता का प्रतीक बन चुकी है और हालिया सैन्य अभियानों में इसकी भूमिका निर्णायक रही है.
3. सामरिक हथियारों में सहयोग
रूस ने भारत के अरिहंत-श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों के विकास में तकनीकी मार्गदर्शन किया. ये पनडुब्बियां भारत के रणनीतिक त्रिकोण का एक कोना हैं. इस तरह का सहयोग अमेरिका जैसे देशों से कभी प्राप्त नहीं हुआ, खासकर न्यूक्लियर प्लेटफॉर्म्स और टैक्टिकल सिस्टम्स के क्षेत्र में.
4. 'नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड' सहयोग
रूस ने भारत के साथ शर्तों से रहित रक्षा संबंध बनाए हैं. 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद जब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए और रक्षा बिक्री पर रोक लगाई, तब भी रूस ने अपनी सैन्य आपूर्ति और तकनीक ट्रांसफर जारी रखा. इसके उलट, अमेरिका के साथ डील्स में अक्सर CAATSA जैसे कानूनों का खतरा जुड़ा होता है.
5. रक्षा से आगे, अंतरिक्ष सहयोग
भारत-रूस सहयोग सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं है. रूस ने भारत को मत्स्ययान समुद्र विज्ञान मिशन और गगनयान अंतरिक्ष अभियान में भी तकनीकी सहायता दी है. रूस की मदद से भारतीय अंतरिक्ष यात्री की उड़ान की योजना बन रही है. यह सहयोग विज्ञान और रणनीतिक स्वायत्तता को भी मजबूती देता है.
भारत की रणनीति: बहुध्रुवीय साझेदारी
भारत अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का नया संस्करण अपनाए हुए है, जिसे ‘मल्टी-अलाइन्मेंट’ कहा जा सकता है. भारत अमेरिका, रूस, फ्रांस, इज़राइल और अन्य देशों से सामरिक साझेदारियां बनाए रखता है, लेकिन किसी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं होता.
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