कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. इस हमले के बाद जहां देशभर में आतंकवाद के खिलाफ आक्रोश है, वहीं कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस घटना की न्यायिक जांच की मांग करते हुए जनहित याचिका दाखिल की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया और कड़ा संदेश भी दिया.
सुप्रीम कोर्ट का दो टूक जवाब: "हम आतंकवाद जांच के विशेषज्ञ नहीं"
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है और न्यायालय को इस तरह की जांच कराने का अधिकार या विशेषज्ञता नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा, "यह वह समय है जब देश को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए, न कि ऐसी याचिकाओं के माध्यम से सुरक्षा बलों का मनोबल गिराया जाए."
कोर्ट की नाराजगी: याचिकाकर्ताओं को फटकार
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को फटकारते हुए कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं गैर-जरूरी विवाद खड़ा करती हैं और देश के सुरक्षा तंत्र पर संदेह जताने जैसी हैं. कोर्ट ने पूछा, "आपकी मांग ये है कि एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज इस हमले की निगरानी में जांच करें? हम कोई जांच एजेंसी नहीं हैं."
बेंच ने आगे कहा कि इस तरह की याचिकाएं दाखिल करना न केवल न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि सुरक्षाबलों के मनोबल को भी प्रभावित कर सकती हैं. कोर्ट ने वकीलों को सलाह दी कि वे अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को समझें और गंभीर मामलों में संयम बरतें.
याचिका वापसी की अनुमति मिली
सुनवाई के दौरान जब कोर्ट का रुख सख्त हुआ, तो याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भविष्य में इस तरह की याचिकाओं को दाखिल करने से पहले उनकी संवेदनशीलता को समझना आवश्यक है.
देश एकजुट, विपक्ष भी सरकार के साथ
पहलगाम हमले की भयावहता को देखते हुए न केवल सरकार, बल्कि विपक्षी पार्टियों ने भी एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ सरकार के रुख का समर्थन किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना के बाद बयान दिया था कि "आतंकवाद को उसकी जड़ों से मिटा दिया जाएगा."
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