नई दिल्ली/वाशिंगटन: अमेरिका और भारत के रिश्तों में एक बार फिर से खटास की बौछार दिखने लगी है और इस बार वजह है रूस से सस्ते तेल की बढ़ती खरीदारी. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, यूक्रेन युद्ध को रोकने की रणनीति के तहत रूस पर चौतरफा दबाव बना रहे हैं. लेकिन उनके तमाम प्रयासों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदने की नीति को बदले बिना और भी आक्रामक रुख अपना लिया है.
रूस से तेल की खरीद और बढ़ाएगा भारत
समाचार एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सितंबर 2025 में रूस से कच्चे तेल की खरीद को अगस्त की तुलना में 10 से 20% तक बढ़ाने जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी Reuters की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय रिफाइनर इस समय रूस द्वारा पेश किए गए छूट वाले तेल ऑफर का लाभ उठाने की तैयारी में हैं.
यह निर्णय ऐसे वक्त पर आया है जब यूक्रेन द्वारा किए गए ड्रोन हमलों ने रूस की कई रिफाइनरियों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है, जिससे उसकी तेल प्रोसेसिंग क्षमता में गिरावट आई है. इस नुकसान की भरपाई और वैश्विक ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए, रूसी तेल कंपनियों ने अपनी कीमतें कम कर दी हैं और भारत ने इसका लाभ उठाने में देर नहीं की.
क्यों रूस का तेल भारत के लिए अहम है?
2022 में जब रूस पर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन युद्ध के चलते कड़े प्रतिबंध लगाए थे, भारत ने कूटनीतिक चतुराई दिखाते हुए रूस से डिस्काउंटेड रेट पर कच्चा तेल खरीदना शुरू किया. इस फैसले ने भारत की रिफाइनिंग कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में कच्चा तेल सस्ता दिलाया, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती मिली.
हालांकि, इस कदम की आलोचना भी हुई. विपक्षी दलों और कुछ सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया कि आम जनता तक इस सस्ते तेल का फायदा नहीं पहुंच पाया. पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में कोई बड़ी राहत देखने को नहीं मिली, जिससे सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा.
ट्रंप का गुस्सा, भारत पर आर्थिक दबाव
भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखने और अब उसे बढ़ाने के फैसले से डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन बुरी तरह नाराज़ है. ट्रंप, जो 2024 में दोबारा राष्ट्रपति बने, अब यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए हर संभव कूटनीतिक और आर्थिक हथकंडा अपना रहे हैं.
इसी रणनीति के तहत, अमेरिका ने भारत पर एक बड़ा आर्थिक प्रतिबंधनात्मक कदम उठाया है. 27 अगस्त 2025 से भारत के कुछ प्रमुख निर्यात उत्पादों जैसे कपड़े, गहने, चमड़े के सामान और हैंडीक्राफ्ट पर आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ाकर 50% कर दिया गया है. यह ट्रंप की भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव डालने की नीति का हिस्सा माना जा रहा है, ताकि वह रूस से दूरी बनाए.
बातचीत जारी, पर भारत झुकने को तैयार नहीं
अमेरिकी प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि ट्रंप सरकार और भारत के बीच टैरिफ विवाद को लेकर अभी भी बातचीत चल रही है. वाणिज्यिक और कूटनीतिक स्तर पर दोनों देशों के अधिकारी संपर्क में हैं, ताकि कोई संतुलन निकाला जा सके.
हालांकि, भारत का रुख साफ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति रूस और चीन जैसे पड़ोसी और रणनीतिक साझेदार देशों के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में लगातार काम कर रही है. भारत इस बात को लेकर स्पष्ट है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों और रणनीतिक हितों से कोई समझौता नहीं करेगा.
क्यों भारत को रूस की ज़रूरत है?
भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी तेल खपत करने वाली अर्थव्यवस्था है. उसकी विकास दर को बनाए रखने के लिए सस्ते और स्थिर ऊर्जा स्रोतों की जरूरत है. रूस से मिलने वाला कच्चा तेल न केवल सस्ता है, बल्कि यह भारत को पश्चिमी देशों के दबाव से भी स्वतंत्र रणनीतिक नीति अपनाने की सुविधा देता है.
रूस भी भारत को एक विश्वसनीय और बड़ा खरीदार मानता है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के चलते रूस को जिन बाजारों में निर्यात करने में दिक्कत हो रही है, भारत उन चुनिंदा देशों में है जो अब भी खुलकर रूस से व्यापार कर रहे हैं.
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