'जियोपॉलिटिक्स के लिए क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था खत्म...' रूस से तेल खरीदने पर भारत का NATO को करारा जवाब

    भारत की विदेश नीति हमेशा से रणनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित रही है.

    India befitting reply to NATO for buying oil from Russia
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    लंदन: भारत की विदेश नीति हमेशा से रणनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यह नीति और भी स्पष्ट हो गई, जब भारत ने न तो किसी पक्ष का खुलकर समर्थन किया, न ही किसी के दबाव में आकर अपने फैसले बदले. अब इस नीति का बेबाक बचाव यूनाइटेड किंगडम में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने भी किया है. उन्होंने रूस से तेल खरीद और भारत-रूस संबंधों पर पश्चिमी मीडिया के सवालों का जो जवाब दिया, वह बिल्कुल उसी शैली में था जैसे भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई बार दे चुके हैं- स्पष्ट, तर्कसंगत और बिना किसी कूटनीतिक मुलायमियत के.

    टाइम्स रेडियो से बातचीत के दौरान जब भारत के रूस से तेल आयात पर सवाल उठाया गया, तो दोरईस्वामी ने बिना किसी लागलपेट के साफ कहा, "क्या आप चाहते हैं कि हम अपनी अर्थव्यवस्था बंद कर दें?" इस बयान ने साफ कर दिया कि भारत अपनी आर्थिक जरूरतों और ऊर्जा सुरक्षा के लिए किसी की अनुमति का मोहताज नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और उसकी 80% से ज्यादा तेल जरूरतें आयात से पूरी होती हैं.

    उच्चायुक्त ने यह स्पष्ट किया कि भारत किसी भी युद्ध में पक्ष नहीं ले रहा, लेकिन एक जिम्मेदार राष्ट्र के तौर पर अपने हितों को प्राथमिकता देता है. "हमारे पास विकल्प सीमित हैं और वैश्विक ऊर्जा बाजार के मौजूदा परिदृश्य में सस्ते और स्थायी स्रोत ही हमारे लिए व्यवहारिक हैं."

    भारत-रूस संबंध सिर्फ तेल पर नहीं टिके

    दोरईस्वामी ने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते सिर्फ हाल के आर्थिक सौदों तक सीमित नहीं हैं. यह रिश्ता दशकों पुराना है, जिसमें रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग और भू-राजनीतिक भरोसे की गहराई शामिल है. उन्होंने याद दिलाया कि जब भारत को हथियारों की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब कई पश्चिमी देश न केवल भारत को हथियार देने से इनकार कर रहे थे, बल्कि पड़ोसी देशों को हथियार भेजकर भारत के खिलाफ संतुलन बिगाड़ने का प्रयास कर रहे थे.

    दोरईस्वामी ने कहा, "ऐसे दौर में रूस ने हमारी जरूरतों को समझा, हमारे साथ खड़ा रहा, और रक्षा सहयोग की नींव रखी. आज वही संबंध हमारी विदेश नीति का स्थायी स्तंभ हैं."

    क्या आप अपने सहयोगियों से भी यही सवाल करते हैं?

    भारत के उच्चायुक्त ने पश्चिमी आलोचना पर तीखा पलटवार करते हुए एक बुनियादी सवाल उठाया, "क्या हम आपसे यह कहते हैं कि आप उन देशों से रिश्ते तोड़ लें, जो हमारे लिए सुरक्षा और स्थिरता के लिहाज से खतरा हैं?" उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश अक्सर उन राष्ट्रों से भी व्यापार करते हैं, जिनका मानवाधिकार रिकॉर्ड संदिग्ध है या जिनकी विदेश नीति भारत के हितों के खिलाफ जाती है.

    उन्होंने कहा, "तो जब आपके लिए यह व्यवहारिक है, तो भारत को क्यों नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता है?"

    उन्होंने यह भी उजागर किया कि कई यूरोपीय देश अब भी चीन, मध्य एशिया और अफ्रीकी देशों से दुर्लभ खनिज और ऊर्जा संसाधन खरीद रहे हैं, जिनके साथ भारत के रिश्तों को लेकर वही पश्चिम देश अक्सर सवाल खड़े करते हैं.

    भारत की नीति: जहां जरूरत, वहां सहयोग

    दोरईस्वामी का यह साक्षात्कार न सिर्फ भारत की ऊर्जा नीति का बचाव था, बल्कि यह उस वैश्विक कूटनीति का प्रतिबिंब भी था जो भारत आज अपनाता है "मल्टी-अलाइनमेंट", यानी जहां जरूरत, वहां सहयोग; जहां नुकसान, वहां दूरी.

    रूस से भारत का तेल आयात हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है. जनवरी से जून 2025 के बीच भारत ने प्रतिदिन औसतन 17.5 लाख बैरल तेल रूस से आयात किया, जो कि 2024 के मुकाबले करीब 1% अधिक है. यह आयात रियायती दरों पर हो रहा है, जिससे भारत को न केवल आर्थिक लाभ हुआ है, बल्कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने में भी मदद मिली है.

    भारत स्पष्ट कर चुका है कि तेल कहां से खरीदा जाए, यह फैसला नई दिल्ली में होगा, न कि वाशिंगटन या लंदन में.

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