ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के भीतर मची खलबली और चीन के साथ उसकी गुप्त मिलीभगत ने एक बार फिर दुनिया के सामने उस मुल्क की पुरानी रणनीतिक चालबाज़ियों को उजागर कर दिया है. भारत द्वारा की गई सटीक और तेज़ सैन्य कार्रवाई ने पाकिस्तान के साथ-साथ उसके समर्थन में खड़े चीन को भी साफ़ संकेत दे दिया कि आतंकवाद और सैन्य धोखाधड़ी अब और बर्दाश्त नहीं होगी.
पाकिस्तान: चालबाज़ी में ‘मास्टर’
भारतीय वायुसेना के पूर्व ग्रुप कैप्टन अजय अहलावत ने हाल ही में पाकिस्तान की धोखेबाज़ फितरत पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह मुल्क इतिहास से ही वैश्विक शक्तियों को इस्तेमाल करने और उन्हें धोखा देने में माहिर रहा है. उन्होंने अमेरिकी विश्लेषक सी. क्रिस्टीन फेयर के उस लेख का समर्थन किया जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान ने कैसे वर्षों तक अमेरिका को भ्रमित रखा और अब यही तरीका वह चीन के साथ भी अपनाएगा. “पाकिस्तान ने अमेरिका की उदारता का फायदा उठाया, अब वह चीन के साथ भी यही करेगा,” — अजय अहलावत
क्रिस्टीन फेयर का खुलासा: पाकिस्तान का ‘झूठ का नेटवर्क’
प्रख्यात पॉलिटिकल एनालिस्ट क्रिस्टीन फेयर ने अपने लेख ‘पाकिस्तान अमेरिकियों को कैसे बहकाता है’ में विस्तार से बताया है कि किस तरह पाकिस्तान ने दशकों तक अमेरिकी नीतियों को गुमराह किया. फेयर का कहना है कि पाकिस्तान की असली ताकत सिर्फ उसकी परमाणु नीति या आतंकी संगठनों में नहीं है, बल्कि उसकी “मीठी बातों में लपेटी गई झूठ की रणनीति” में है.वह लिखती हैं, “अमेरिकी अधिकारी अक्सर पाकिस्तान की आतिथ्यपूर्ण झूठी बातों में बहक जाते हैं. वे क्षेत्रीय जटिलताओं को नहीं समझते और पाकिस्तान इस भ्रम का पूरा लाभ उठाता है.”
अफगानिस्तान से चीन तक: पाकिस्तान की दोहरी नीति
फेयर बताती हैं कि पाकिस्तान की जिहादी रणनीति कोई नई नहीं, बल्कि यह 1970 के दशक में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में ही शुरू हो गई थी.
ISI द्वारा स्थापित अफगानिस्तान सेल ने इस्लामवादियों को साधने और अफगान मामलों में हस्तक्षेप की एक व्यवस्थित नीति बनाई. यह सब उस दौर में शुरू हुआ जब अफगानिस्तान में राजा ज़ाहिर शाह को हटाकर दाउद खान सत्ता में आए थे.
अमेरिकी समर्थन, चीनी करीबी और समझौतों की अनदेखी
पाकिस्तान ने SEATO जैसे अमेरिकी रक्षा समझौतों में शामिल होते हुए भी कोरियाई और वियतनाम युद्ध में कोई भूमिका नहीं निभाई. इसके उलट, वह चीन जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्र को खुश करने में जुटा रहा — वह भी तब, जब वह खुद कम्युनिज़्म-विरोधी गठबंधनों का हिस्सा था. यह रणनीतिक दोगलापन वर्षों से पाकिस्तान की विदेश नीति की पहचान रही है.
आतंकवाद के खिलाफ दोहरा खेल
सबसे गंभीर आरोप फेयर ने पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी वैश्विक युद्ध में भूमिका को लेकर लगाए हैं.उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने एक ओर खुद को ‘मेजर नॉन-नाटो एलाय’ के रूप में प्रस्तुत किया, तो दूसरी ओर तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन और सुरक्षित पनाह भी देता रहा. “2001 के बाद अमेरिका से मिली अरबों डॉलर की सहायता के बावजूद पाकिस्तान आतंकवादियों को पालता रहा,” — क्रिस्टीन फेयर
चीन से नया गठजोड़, लेकिन कब तक?
ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की सैन्य तैयारी में चीनी हथियार प्रणाली — HQ-9/P और FD-2000 जैसे एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम — को ध्वस्त कर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब कोई भी सैन्य साझेदारी भारत की सुरक्षा नीति को नहीं रोक सकती. अब सवाल यह है कि क्या चीन भी वही गलती दोहराएगा जो कभी अमेरिका ने की — यानी पाकिस्तान पर भरोसा करके?
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