मध्य पूर्व में तनाव चरम पर पहुंच गया है. शुक्रवार को इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमले के बाद अब ईरान ने इजरायल पर जवाबी हमला कर दिया है. यह हमला न सिर्फ तीव्र था, बल्कि रणनीतिक तौर पर बेहद अहम भी माना जा रहा है.
शनिवार तड़के ईरान ने इजरायल की राजधानी तेल अवीव में स्थित किरया कंपाउंड – जिसे इजरायल का पेंटागन कहा जाता है – को बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों से निशाना बनाया. यह हमला सीधे-सीधे इजरायल की सैन्य शक्ति और सुरक्षा तंत्र को चुनौती देने जैसा है.
किरया कंपाउंड: इजरायली सेना का दिल
तेल अवीव में स्थित किरया कंपाउंड सिर्फ एक सैन्य ठिकाना नहीं, बल्कि पूरे इजरायल के रक्षा संचालन का नर्व सेंटर है. यहां इजरायल डिफेंस फोर्स (IDF) का मुख्यालय, जनरल स्टाफ, और अन्य कमांड यूनिट्स मौजूद हैं. इस कंपाउंड पर हमला, किसी देश की सैन्य रीढ़ को झकझोर देने जैसा है.
हमला कैसे हुआ?
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान ने तीन बैच में सैकड़ों मिसाइलें दागीं. इनमें से कुछ मिसाइलें हाइपरसोनिक बताई जा रही हैं, जो मौजूदा वायु रक्षा प्रणालियों को चकमा देने में सक्षम होती हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की फुटेज में देखा गया कि मार्गनिट टॉवर के आसपास एक मिसाइल आकर गिरी. फॉक्स न्यूज ने भी हमले की पुष्टि करते हुए बताया कि मिसाइल से किरया परिसर की एक इमारत को काफी नुकसान पहुंचा है. फॉक्स के रिपोर्टर ट्रे यिंगस्ट के मुताबिक, हमला तीन बैच में हुआ और एक लहर में हाइपरसोनिक मिसाइलें भी शामिल थीं.
सैन्य और रणनीतिक संदेश
इस हमले के कई स्तर हैं – सैन्य, राजनीतिक और प्रतीकात्मक. ईरान ने इस हमले के जरिए यह साफ कर दिया है कि वह अब सीधे इजरायल के सैन्य केंद्रों को निशाना बना सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल की अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम – आयरन डोम और एरो-3 – को चकमा देकर मिसाइलों का इस कंपाउंड तक पहुंचना एक बड़ी सैन्य कामयाबी मानी जा सकती है.
जनहानि नहीं, लेकिन संदेश साफ है
हालांकि स्थानीय मीडिया के अनुसार किरया कंपाउंड के भीतर कोई हताहत नहीं हुआ, पर इसके आसपास के इलाकों में चोटें और नुकसान की खबरें हैं. फिर भी, इस हमले ने यह साबित कर दिया है कि अब इजरायल का सबसे सुरक्षित इलाका भी पूरी तरह से अजेय नहीं है.
आगे क्या?
तेहरान के इस हमले ने यह संकेत दे दिया है कि यह टकराव अब पारंपरिक सीमा से बाहर निकलता जा रहा है. इजरायल की नेतन्याहू सरकार पर सैन्य और राजनीतिक दबाव दोनों बढ़े हैं, जबकि ईरान ने दुनिया को अपनी सैन्य क्षमता का खुलकर प्रदर्शन किया है.
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