सतलुज नदी के जल प्रवाह में आई भारी कमी, क्या चीन रोक रहा भारत का पानी? सैटेलाइट डाटा से बड़ा खुलासा

    भारत-चीन जल संसाधनों को लेकर कोई औपचारिक समझौता नहीं होने के बावजूद, हाल ही में सामने आए सैटेलाइट डाटा ने एक नई चिंता को जन्म दिया है.

    huge decrease in the water flow of the Sutlej river
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Social Media

    नई दिल्ली: भारत-चीन जल संसाधनों को लेकर कोई औपचारिक समझौता नहीं होने के बावजूद, हाल ही में सामने आए सैटेलाइट डाटा ने एक नई चिंता को जन्म दिया है. सतलुज नदी, जो तिब्बत से निकलकर हिमाचल प्रदेश के ज़रिए भारत में प्रवेश करती है, उसके जल प्रवाह में पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व 75% की गिरावट दर्ज की गई है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव प्राकृतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और तकनीकी कारणों से प्रेरित हो सकता है.

    सैटेलाइट डाटा से हुआ खुलासा

    NASA के पूर्व स्टेशन मैनेजर और भूस्थानिक विश्लेषक डॉ. वाय नित्यानंद द्वारा सैटेलाइट डाटा के आधार पर किए गए विश्लेषण से यह जानकारी सामने आई है कि सतलुज नदी के भारतीय सीमा में प्रवेश से पहले, उसके जल प्रवाह में गंभीर कमी देखी गई है. डॉ. नित्यानंद के अनुसार, जहां पहले सतलुज का जल प्रवाह करीब 8,000 गीगालीटर प्रति वर्ष था, वह अब घटकर मात्र 2,000 गीगालीटर रह गया है.

    उनका मानना है कि इस गिरावट के पीछे दो संभावनाएं हो सकती हैं:

    मानव निर्मित हस्तक्षेप: विशेष रूप से चीन द्वारा नदी के प्रवाह को मोड़ना या रोकना.

    प्राकृतिक कारण: लेकिन यह संभावना कम है, क्योंकि ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने के चलते प्रवाह में वृद्धि होनी चाहिए थी, न कि गिरावट.

    चीन की जल नियंत्रण रणनीति

    तिब्बत क्षेत्र में चीन ने हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर बांध निर्माण और जलविद्युत परियोजनाएं स्थापित की हैं. इनमें सबसे उल्लेखनीय है जाडा गॉर्ज (Zhada Gorge) क्षेत्र में निर्मित बांध और जल भंडारण संरचनाएं. इन परियोजनाओं ने चीन को नदियों के बहाव को नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान की है, विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी अंतर्राष्ट्रीय नदियों पर.

    विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और चीन के बीच पानी साझा करने या सूचना विनिमय का कोई बाध्यकारी समझौता नहीं है. हालांकि, एक डेटा साझा करने का समझौता 2023 में समाप्त हो गया था, और तब से इसे न तो नवीनीकृत किया गया और न ही किसी नई व्यवस्था की घोषणा हुई.

    राजनीतिक और भूराजनीतिक चिंताएं

    भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति में है, खासकर हालिया घटनाओं और भारत द्वारा पाकिस्तान को जाने वाले पानी को सीमित करने की चर्चाओं के बीच. अब, जब चीन के साथ सतलुज जैसे ट्रांसबाउंड्री जल संसाधनों पर कोई स्पष्ट नियम या समझौता नहीं है, भारत की चिंता और बढ़ गई है.

    भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन रणनीतिक विश्लेषक इसे “सॉफ्ट वाटर वारफेयर” का संभावित संकेत मान रहे हैं.

    "यदि चीन सच में सतलुज का जल प्रवाह रणनीतिक कारणों से रोक रहा है, तो यह भारत के लिए न केवल पर्यावरणीय बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन सकता है."- डॉ. प्रतीक जोशी, जल-सुरक्षा विश्लेषक

    क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?

    अंतरराष्ट्रीय जल संसाधनों पर संयुक्त राष्ट्र का सिद्धांत "उचित और न्यायसंगत उपयोग" (equitable and reasonable use) देशों को साझा नदियों के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करने से रोकता है. लेकिन, चूंकि भारत और चीन इस सिद्धांत के तहत किसी समझौते में नहीं बंधे हैं, ऐसे मामलों में कानूनी मार्ग स्पष्ट नहीं होता.

    आगे की राह: बातचीत या टकराव?

    कूटनीतिक चैनल सक्रिय करने की आवश्यकता: भारत को चाहिए कि वह चीन के साथ जल संसाधनों पर एक नया संवाद प्रारंभ करे, जिसमें डेटा साझाकरण और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाए.

    वैज्ञानिक मूल्यांकन: जल प्रवाह में गिरावट के सटीक कारणों का पता लगाने के लिए संयुक्त वैज्ञानिक अध्ययन अनिवार्य हैं.

    रणनीतिक तैयारी: यदि यह प्रमाणित होता है कि चीन जल को रणनीतिक रूप से रोक रहा है, तो भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की योजना बनानी चाहिए.

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