आखिर ISRO का मिशन कैसे हुआ फेल, कहां हुई चूक? स्पेस एजेंसी ने बता दिया सच

    भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को उस समय झटका लगा जब ISRO का 63वां पीएसएलवी मिशन निर्धारित कक्षा तक उपग्रह पहुंचाने में विफल रहा. इस मिशन के तहत EOS-9 (अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-9) को पृथ्वी की सतह से लगभग 500 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जाना था, लेकिन तीसरे चरण में दबाव की कमी के चलते मिशन बीच में ही रुक गया.

    How ISRO Mission did not accomplished scientist told
    Image Source: Youtube

    भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को उस समय झटका लगा जब ISRO का 63वां पीएसएलवी मिशन निर्धारित कक्षा तक उपग्रह पहुंचाने में विफल रहा. इस मिशन के तहत EOS-9 (अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-9) को पृथ्वी की सतह से लगभग 500 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जाना था, लेकिन तीसरे चरण में दबाव की कमी के चलते मिशन बीच में ही रुक गया.

    लॉन्च की शुरुआत सफल, लेकिन बीच में आई तकनीकी बाधा

    रविवार सुबह ठीक 5:59 बजे, श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV का प्रक्षेपण हुआ. पहला और दूसरा चरण बिना किसी रुकावट के पूरा हुआ. लेकिन जैसे ही रॉकेट ने तीसरे चरण में प्रवेश किया, ठोस ईंधन के दौरान "असामान्य दबाव में गिरावट" देखी गई, जिससे मिशन आगे नहीं बढ़ पाया. इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने पुष्टि की कि यही तकनीकी समस्या रॉकेट की विफलता का कारण बनी. EOS-9 को भारत की निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तैयार किया गया था, विशेष रूप से रणनीतिक और आपदा प्रबंधन उद्देश्यों के लिए.

    EOS-9: निगरानी और डेटा विश्लेषण के लिए अहम उपग्रह

    EOS-9 को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि वह रिमोट सेंसिंग डेटा के माध्यम से भारत को पर्यावरण, कृषि, रक्षा और सीमाओं की निगरानी में मदद कर सके. यदि यह उपग्रह सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो जाता, तो यह संवेदनशील सीमाओं पर तनाव कम करने और त्वरित निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था.

    अब क्या? फेल्योर एनालिसिस की प्रक्रिया शुरू

    ISRO ने स्पष्ट किया है कि आंतरिक विफलता विश्लेषण समिति और सरकारी स्वतंत्र जांच समिति अब मिशन की असफलता की विस्तृत जांच करेंगी. PSLV को अब तक भारत का सबसे भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल माना जाता रहा है. इससे पहले इसी रॉकेट से चंद्रयान और मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किए गए थे. रिपोर्ट की उम्मीद है कि यह एक सप्ताह के भीतर सार्वजनिक की जाएगी, जिसमें असफलता के तकनीकी कारणों का खुलासा होगा और भविष्य में ऐसे जोखिमों को रोकने के उपाय सुझाए जाएंगे.

    यह भी पढ़ें: इसरो का 101वां मिशन हो गया फेल, वैज्ञानिक हुए मायूस