वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, केंद्र बोला - ‘सरकारी जमीन पर किसी का हक नहीं’

    नई दिल्ली में इन दिनों वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस चल रही है. बुधवार को लगातार दूसरे दिन इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई.

    Hearing on Waqf Amendment Act in Supreme Court
    सुप्रीम कोर्ट | Photo: ANI

    नई दिल्ली में इन दिनों वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस चल रही है. बुधवार को लगातार दूसरे दिन इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में साफ कहा कि सरकार एक लंबे समय से चली आ रही समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रही है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1923 से मानी जाती है.

    केंद्र का स्पष्ट रुख

    तुषार मेहता ने दलील दी कि यदि कोई जमीन सरकार की है, तो उस पर किसी का अधिकार नहीं हो सकता, चाहे वह ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा के तहत ही क्यों न घोषित की गई हो. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार को पूर्ण अधिकार है कि वह उस जमीन को वापस ले ले, भले ही उसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया हो.

    सॉलिसिटर जनरल ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था है और यह नया कानून केवल इसके प्रबंधन व संचालन को दुरुस्त करने के उद्देश्य से लाया गया है. इसका किसी भी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता.

    कोर्ट की प्राथमिकता: मुद्दों तक सीमित रहना

    इससे पहले, 20 मई को हुई सुनवाई में CJI बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र की उस मांग पर विचार किया था जिसमें कहा गया था कि सुनवाई को उन तीन प्रमुख मुद्दों तक सीमित रखा जाए जिन पर सरकार पहले ही जवाब दाखिल कर चुकी है.

    सुप्रीम कोर्ट में पांच मुख्य याचिकाएं

    वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ दाखिल पांच प्रमुख याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है. इनमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है. दोनों पक्षों को अपने तर्क पेश करने के लिए कुल 7 घंटे का समय दिया गया है. मंगलवार को पहले चरण में याचिकाकर्ताओं के पक्ष की दलीलें करीब 3 घंटे तक सुनी गईं, जिसके बाद सुनवाई स्थगित कर दी गई थी.

    केंद्र ने कहा – गहराई से किया गया है विचार

    मेहता ने यह भी कहा कि यह कानून बिना सोच-विचार के नहीं बना है. “यह कोई ऐसा मामला नहीं है जहां मंत्रालय ने जल्दी में बिल बनाया और संसद में पास करा लिया,” उन्होंने कहा. केंद्र के अनुसार, इस कानून पर संसद की संयुक्त समिति (JPC) ने 96 बैठकें कीं और करीब 97 लाख लोगों से सुझाव प्राप्त किए गए.

    कोर्ट की चेतावनी – "मजबूत दलीलें लाइए"

    मंगलवार को कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को कहा कि यदि वे अंतरिम राहत चाहते हैं, तो उन्हें मजबूत और स्पष्ट दलीलें देनी होंगी. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यदि कोई संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है, तो वह वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती.

    इस पर CJI ने सवाल किया कि क्या ASI संरक्षित स्थल पर प्रार्थना नहीं हो सकती? क्या ASI का संरक्षण धर्म पालन के अधिकार को खत्म कर देता है? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि यदि संपत्ति ASI द्वारा संरक्षित घोषित हो जाए, तो वह वक्फ की श्रेणी से बाहर हो जाती है. उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन बताया.

    कोर्ट का रुख – कानून को यूं ही नहीं रोका जा सकता

    बेंच ने स्पष्ट किया कि जब तक याचिकाकर्ता मजबूत आधार प्रस्तुत नहीं करते, तब तक कानून की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती. अंतरिम राहत के लिए याचिकाकर्ताओं की दलीलें ठोस होनी चाहिए, वरना संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी.

    सरकार की प्रमुख बातें:

    • याचिकाएं केवल तीन मुद्दों पर केंद्रित हैं, कोर्ट भी इन्हीं पर सुनवाई करे.
    • यह कानून पारदर्शिता, जवाबदेही और सुधार के उद्देश्य से लाया गया है.
    • धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं हो रहा है.
    • वक्फ की अवधारणा मूल रूप से धर्मनिरपेक्ष है.
    • संसद से पारित कानून को केवल ठोस संवैधानिक आधार पर ही रोका जा सकता है.

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