जब एक डॉक्टर मां अस्पताल में जिंदगी बचा रही थी, उसी वक्त शव के ढेर में दिखीं खुद के ही बच्चों की लाशें...

    गाजा में एक मां के लिए वो दिन बस एक और काम का दिन नहीं था — वो उसकी ज़िंदगी का सबसे भयावह दिन बन गया.

    Gaza emotional story of doctor mother
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    गाजा में एक मां के लिए वो दिन बस एक और काम का दिन नहीं था — वो उसकी ज़िंदगी का सबसे भयावह दिन बन गया. डॉ. नज्जर, एक समर्पित डॉक्टर, रोज़ की तरह उस सुबह भी अस्पताल गई थीं — ज़ख्मी लोगों की जान बचाने, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जब वो दूसरों को ज़िंदगी दे रही होंगी, तब उनकी अपनी दुनिया उजड़ रही होगी.

    कुछ ही घंटे बाद उसी अस्पताल में सात जले हुए बच्चों के शव लाए गए. सबसे बड़ा बच्चा सिर्फ 12 साल का था, और सबसे छोटा 3 साल का. और ये बच्चे किसी और के नहीं, खुद डॉ. नज्जर के अपने बच्चे थे.

    गाजा सिविल डिफेंस के अनुसार, उनके घर पर इज़रायली हवाई हमले में यह हमला हुआ. दो और छोटे बच्चे — एक सात महीने का और एक दो साल का — मलबे में दबे मिले. CNN की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. नज्जर का एक ही बच्चा ज़िंदा बचा है, लेकिन उसकी हालत भी गंभीर है. उनके पति, जो खुद भी डॉक्टर हैं, इस हमले में बुरी तरह घायल होकर ICU में भर्ती हैं.

    एक मां होने की कीमत

    गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल, मुनीर अल-बरश, ने एक्स (Twitter) पर लिखा: “याह्या, रकन, रसलन, जिबरान, ईव, रिवाल, सायेदन, लुकमान और सिद्रा — डॉ. नज्जर के नौ बच्चे इस हमले में मारे गए. उनके पति ICU में हैं. यह गाजा में हमारे मेडिकल स्टाफ की असलियत है. ऐसा दर्द जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.”

    जब घर नहीं, सिर्फ राख बची हो

    गाजा सिविल डिफेंस द्वारा जारी किए गए वीडियो में दिखता है कि कैसे राहतकर्मी जले हुए मलबे से बच्चों के शव निकाल रहे हैं. चारों तरफ धुआं, चीखें और एक ऐसा सन्नाटा जिसमें सिर्फ मौत की मौजूदगी महसूस होती है.

    इज़रायली सेना ने बयान दिया कि उन्होंने संदिग्धों को निशाना बनाया था जो सैनिकों के पास एक इमारत से काम कर रहे थे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आम नागरिकों की मौत की जांच की जा रही है. लेकिन इस "जांच" से एक मां की गोद फिर से नहीं भर सकती.

    डॉ. नज्जर की कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं

    यह कहानी गाजा की उस असलियत को सामने लाती है, जहां माताएं बच्चों को पालते हुए हर रोज़ डर के साए में जीती हैं, जहां डॉक्टर दूसरों की जान बचाते हैं, लेकिन खुद अपने घरवालों को खोने से नहीं रोक पाते.

    यह कहानी एक युद्ध नहीं — एक मातम की दास्तान है.

    “युद्ध सिर्फ बॉर्डर पर नहीं होता, वह घरों के अंदर टूट पड़ता है — सबसे गहरी चोट वहां लगती है, जहां सबसे ज़्यादा प्यार होता है.” डॉ. नज्जर की आंखों से आज सिर्फ आंसू नहीं बह रहे — वह इंसानियत के टूटने की गवाही दे रही हैं.

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