फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता गहराती जा रही है. प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू की सरकार गिरने के बाद शुरू हुए जनआंदोलन अब उग्र रूप ले चुके हैं. राजधानी पेरिस सहित देश के कई बड़े शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं. प्रदर्शन के दौरान आगजनी, तोड़फोड़ और रेल मार्ग बाधित करने जैसी घटनाएं सामने आई हैं, जिससे हालात बेकाबू हो गए हैं.
इन विरोध प्रदर्शनों की सबसे खास बात यह है कि यह किसी राजनीतिक दल या संगठन द्वारा नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ अभियान के तहत शुरू किए गए हैं. इस आंदोलन का कोई तय नेतृत्व नहीं है, लेकिन इसमें शामिल लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लोग खुद-ब-खुद सड़कों पर उतर रहे हैं, जो देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के प्रति गहरी नाराजगी को दर्शाता है.
प्रदर्शनकारियों का केंद्र बने राष्ट्रपति मैक्रों
इस जन असंतोष का सीधा निशाना राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों बनते जा रहे हैं. सरकार के खिलाफ गुस्से का केंद्र बिंदु अब सिर्फ नीति या बजट नहीं, बल्कि खुद राष्ट्रपति की कार्यशैली और निर्णय हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि देश को नए मंत्रियों की नहीं, बल्कि एक नए राष्ट्रपति की जरूरत है. उनके अनुसार मैक्रों ही फ्रांस की मौजूदा समस्याओं की जड़ हैं.
सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद बेकाबू हालात
सरकार ने देशभर में 80,000 पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया है ताकि स्थिति पर काबू पाया जा सके. लेकिन प्रदर्शनकारियों की संख्या और उनका उग्र रूप देखकर साफ है कि पुलिस की मौजूदगी भी हालात को नियंत्रित करने में नाकाम रही है. इसके चलते फ्रांस की आंतरिक राजनीति में भूचाल आ गया है और राष्ट्रपति पर इस्तीफे का दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है.
मैक्रों ने इस्तीफे से किया इनकार, संकट बना हुआ है
विरोध के बावजूद राष्ट्रपति मैक्रों ने इस्तीफे की अटकलों को खारिज किया है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटेंगे. सरकार इस आंदोलन को एक "राजनीतिक शरारत" के रूप में देख रही है, लेकिन हालात जिस तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं, उससे यह अंदेशा भी गहराने लगा है कि अगर स्थिति जल्द न सुधरी, तो मैक्रों की कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है.
महंगाई, बजट कटौती और अविश्वास ने भड़काया आंदोलन
इन प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में देश की आर्थिक स्थिति, बढ़ती महंगाई, और सरकार की सख्त वित्तीय नीतियां शामिल हैं. खासतौर पर बजट में की गई कटौतियों से आम जनता में रोष है. वहीं फ्रांस्वा बायरू के इस्तीफे ने राजनीतिक अनिश्चितता को और हवा दे दी, जिससे आंदोलन ने और तीव्र रूप ले लिया.
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