इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जिस समय गाज़ा पर स्थायी कब्जे की रणनीति को अमलीजामा पहनाने में लगे हैं, ठीक उसी वक्त उन्हें अपने ही देश के भीतर से दो अप्रत्याशित झटकों का सामना करना पड़ा है. एक ओर जहां इज़राइली सेना के प्रमुख इयाल जमीर ने प्रधानमंत्री की योजना पर आपत्ति जताते हुए खुलकर विरोध दर्ज कराया है, वहीं दूसरी ओर हाई कोर्ट ने नेतन्याहू की एक राजनीतिक चाल पर लगाम कस दी है.
गाज़ा स्ट्रिप पर कब्जा करने की रणनीति को लेकर बुलाई गई एक उच्चस्तरीय बैठक में IDF (इज़राइल डिफेंस फोर्स) के चीफ इयाल जमीर ने सीधे तौर पर नेतन्याहू के प्लान पर सवाल खड़े किए. हिब्रू मीडिया के अनुसार, जमीर का मानना है कि मौजूदा हालात में गाज़ा पर स्थायी कब्जा न सिर्फ अव्यावहारिक है बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर इज़राइल की छवि को भारी नुकसान पहुंच सकता है.
सेना प्रमुख ने खारिज की गाज़ा कब्जे की योजना
जमीर ने यह भी कहा कि “अब हमास कोई बड़ा खतरा नहीं है, और हमारे सैनिक लंबे समय से मोर्चे पर डटे हैं—वे शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुके हैं.” उनका तर्क है कि इस समय एक नए मोर्चे की शुरुआत से सेना पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और अंतरराष्ट्रीय आलोचना भी बढ़ेगी.
हाई कोर्ट से दूसरा झटका
इज़राइली प्रधानमंत्री को दूसरा झटका तब लगा जब हाई कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को हटाने के प्रस्ताव पर तत्काल रोक लगा दी. नेतन्याहू ने भ्रष्टाचार के आरोपों में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर रही अटॉर्नी जनरल को संसद के जरिए पद से हटाने की कोशिश की थी. लेकिन कोर्ट ने इसे कानूनी प्रक्रिया के विरुद्ध मानते हुए उस पर स्टे लगा दिया. यह वही अटॉर्नी जनरल हैं जिन्होंने नेतन्याहू के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों में कई अहम कानूनी कदम उठाए हैं, और उन्हें सत्ता का दुरुपयोग करते हुए देखा जाता रहा है.
राजनीतिक और सैन्य मोर्चे पर बढ़ती दरारें
गाज़ा पर कब्जे के मसले पर नेतन्याहू और इयाल जमीर के बीच टकराव अब खुलकर सामने आ गया है. दिलचस्प बात यह है कि यह वही इयाल जमीर हैं जिनकी नियुक्ति नेतन्याहू सरकार के ही रक्षा मंत्री, इज़राइल काट्ज़, की सिफारिश पर हुई थी. लेकिन अब नेतन्याहू के बेटे यायर ने जमीर पर व्यक्तिगत हमला बोलते हुए कहा कि वे वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं और सरकार की नीतियों के खिलाफ साजिश रच रहे हैं. यायर ने यह भी आरोप लगाया कि हिब्रू मीडिया की वो रिपोर्ट, जिसमें गाज़ा संकट की जिम्मेदारी पूरी तरह प्रधानमंत्री पर डालने की बात कही गई थी, जमीर के इशारे पर छपी है.
नेतन्याहू की दुविधा बढ़ी
गाज़ा पर स्थायी नियंत्रण की नीति को लेकर नेतन्याहू की रणनीति अब सवालों के घेरे में है. एक ओर सेना का शीर्ष नेतृत्व इस योजना को खारिज कर रहा है, तो दूसरी ओर न्यायपालिका उनके राजनीतिक फैसलों पर लगाम कस रही है. इन परिस्थितियों में नेतन्याहू को गाज़ा में अगला कदम उठाने से पहले न केवल सेना का भरोसा जीतना होगा, बल्कि घरेलू कानूनी लड़ाइयों में भी खुद को साबित करना होगा. वरना यह आक्रामक रणनीति उनकी सरकार के लिए भारी पड़ सकती है.
यह भी पढ़ें: हमले से नहीं सूखे से परेशान हुआ ईरान, सबसे बड़ी झील में नहीं बचा पानी; 50 लाख लोगों का क्या होगा?