हमले से नहीं सूखे से परेशान हुआ ईरान, सबसे बड़ी झील में नहीं बचा पानी; 50 लाख लोगों का क्या होगा?

    ईरान इस समय जिस मोर्चे पर सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहा है, वह न भू-राजनीति है, न कोई सैन्य संघर्ष – बल्कि पानी की बूंद-बूंद के लिए जूझता जीवन. दशकों की नीतिगत लापरवाही, जल प्रबंधन की विफलता और बेकाबू जल दोहन ने देश को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है.

    Iran is effect with severe drought crises 50 lakh people facing problem
    Image Source: Social Media

    ईरान इस समय जिस मोर्चे पर सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहा है, वह न भू-राजनीति है, न कोई सैन्य संघर्ष – बल्कि पानी की बूंद-बूंद के लिए जूझता जीवन. दशकों की नीतिगत लापरवाही, जल प्रबंधन की विफलता और बेकाबू जल दोहन ने देश को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां उसकी नदियां दम तोड़ रही हैं और झीलें केवल भूगोल की किताबों में ही जीवित रह गई हैं.

    सबसे करुण तस्वीर है उर्मिया झील की – वह झील जो कभी मध्य-पूर्व की शान हुआ करती थी, आज मौत के मुहाने पर खड़ी है.

    जहां झील थी, वहां अब नमक की आंधियां हैं

    उर्मिया झील, जो एक ज़माने में 5,000 वर्ग किलोमीटर में फैली खारे पानी की झील थी, अब सिकुड़कर नमक का मैदान बन चुकी है. उसका पानी गायब हो चुका है और बचे हैं तो केवल नमक के तूफान, जो आसपास की आबादी और पर्यावरण के लिए धीमा ज़हर बन चुके हैं. 

    जानकारों का कहना है कि झील में अब भी 1 से 2 अरब टन नमक मौजूद है, जो गर्म हवाओं के साथ उड़कर खेतों, गांवों और जलस्रोतों को संक्रमित कर रहा है. इससे न केवल खेती की ज़मीन बंजर हो रही है, बल्कि सांस की बीमारियों में भी जबरदस्त इजाफा हो रहा है. उरुमिया, सलमास और तबरीज जैसे शहरों में करीब 50 लाख लोगों की आबादी विस्थापन के कगार पर है. उनके सामने सबसे बड़ा सवाल है, वे जाएं तो जाएं कहां?

    विकास की दौड़ में गलती से बनी थी एक सड़क, जिसने कर दिया सब कुछ तबाह

    साल 2000 के आसपास, ईरान सरकार ने उर्मिया झील के बीच एक पुल और सड़क बना दी थी, जिससे झील दो हिस्सों में बंट गई. यही वह गलती थी जिसने झील का संतुलन तोड़ दिया. जल प्रवाह अवरुद्ध हो गया और दक्षिणी हिस्सा सबसे पहले सूखने लगा. यह एक ऐसा इकोलॉजिकल ब्लंडर था, जिसकी कीमत आज पूरा देश चुका रहा है.

    90% भूभाग सूखे की चपेट में, फिर भी नहीं बदली सोच

    आज हालात ये हैं कि ईरान का लगभग 90 फीसदी क्षेत्र किसी न किसी स्तर के सूखे से प्रभावित है. भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है. बारिश औसत से कहीं कम हो रही है, और जलाशयों में पानी का नामोनिशान मिटता जा रहा है. ग्लोबल जल संकट पर काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान की कृषि व्यवस्था इस संकट की सबसे बड़ी दोषी है. देश की 9 करोड़ आबादी हर साल करीब 100 अरब क्यूबिक मीटर पानी खर्च कर देती है – जो कि तुर्की जैसे समान जनसंख्या वाले देश से लगभग दोगुना है.


    रेत के तूफान, 50 डिग्री तापमान और एक देश की थमी हुई सांसें

    2025 में ईरान में पारा 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा चुका है. यह भीषण गर्मी रेत के तूफानों को जन्म दे रही है. सूखा अब सिर्फ एक मौसम संबंधी शब्द नहीं रह गया है – यह वहां के लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है.स्कूल बंद हो रहे हैं, खेत सूख रहे हैं, और नदियों के किनारे अब बच्चों की किलकारियों की जगह सूखे की दरारें सुनाई देती हैं. लाखों लोग पानी की तलाश में अपने गांव-घरों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, लेकिन वहां भी हालात कुछ खास बेहतर नहीं हैं.


    उर्मिया के सूखने से क्या खत्म हो जाएगा ईरान का जल जीवन चक्र?

    उर्मिया झील सिर्फ एक जलस्रोत नहीं थी, बल्कि एक प्राकृतिक एयर कंडीशनर की तरह काम करती थी. यह क्षेत्र के तापमान को नियंत्रित रखती थी और मौसम चक्र को संतुलित करती थी. इसके सूख जाने से पूरा ईको-सिस्टम गड़बड़ा गया है. पक्षियों की प्रजातियां गायब हो रही हैं, मौसम का संतुलन टूट गया है, और मिट्टी में वह ताकत नहीं बची कि वह बीज को जीवन दे सके.
    अब भी समय है. वरना इतिहास केवल नाम बताएगा, नक्शे पर पानी नहीं

    ईरान के सामने अब दो ही रास्ते हैं – या तो वह जल प्रबंधन में व्यापक सुधार करे, या फिर अपनी आने वाली पीढ़ियों को जलविहीन भविष्य के लिए तैयार करे. समय कम है, और खतरा बड़ा. उर्मिया झील केवल ईरान के लिए चेतावनी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है. अगर हमने प्रकृति से उसकी सीमाओं से ज्यादा लिया, तो वह हमें जीवन देने की जगह सिर्फ खामोशी देगी.

    यह भी पढ़ें: पुतिन के आगे ट्रंप नहीं दिखा पाए तेवर, रूस ने खब सुनाते हुए कहा- हमारे पास BRICS है