अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बहुचर्चित टैरिफ नीति को बड़ा झटका लगा है. एक संघीय अपील अदालत ने ट्रंप द्वारा लागू किए गए कई टैरिफ को कानूनी रूप से असंवैधानिक करार देते हुए स्पष्ट कहा कि आपातकालीन शक्तियों का इस तरह प्रयोग नियमों के दायरे से बाहर है. यह फैसला अमेरिकी व्यापार नीतियों पर गंभीर सवाल उठाता है और आने वाले समय में यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर पहुंचेगा, जहां इसका अंतिम निपटारा होने की उम्मीद है.
अपने कार्यकाल के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर एक आक्रामक रुख अपनाया था. उन्होंने विदेशी सामानों पर टैरिफ लगाकर अमेरिका के हितों की रक्षा करने की रणनीति अपनाई थी. ट्रंप का मानना था कि इन शुल्कों के जरिए वह अन्य देशों पर दबाव बनाकर अमेरिका के लिए बेहतर व्यापारिक समझौते कर सकते हैं. हालांकि, उनकी इस नीति का व्यापक असर वैश्विक बाजार पर भी पड़ा और भारत सहित कई देशों से व्यापारिक तनाव बढ़ा. अब अदालत ने यही नीति सवालों के घेरे में ला दी है.
कोर्ट का कड़ा रुख
वॉशिंगटन डीसी की संघीय सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने अपने 7-4 के बहुमत वाले फैसले में कहा कि राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों में कई शक्तियां प्राप्त हैं, लेकिन टैक्स या टैरिफ लगाने का अधिकार इनमें शामिल नहीं है. अदालत ने साफ किया कि इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का ट्रंप ने गलत इस्तेमाल किया.हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला उन टैरिफ पर नहीं लागू होता जो IEEPA कानून के अंतर्गत लगाए गए थे.
किन टैरिफ पर पड़ी गाज?
यह फैसला मुख्यतः दो तरह के टैरिफ पर केंद्रित रहा — पहला, अप्रैल में शुरू की गई ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ व्यवस्था और दूसरा, फरवरी में चीन, कनाडा और मैक्सिको से आयात पर लगाए गए शुल्क. स्टील और एल्युमिनियम पर लागू अन्य टैरिफ इस दायरे से फिलहाल बाहर हैं.
सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा मामला?
हालांकि, अदालत ने ट्रंप प्रशासन को यह राहत दी है कि ये टैरिफ 14 अक्टूबर तक प्रभावी रह सकते हैं, जिससे उन्हें अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अवसर मिल सके. यह तय माना जा रहा है कि ट्रंप इस फैसले को चुनौती देंगे, और इस प्रक्रिया के दौरान अमेरिका की आर्थिक नीतियों पर एक नई कानूनी बहस खड़ी हो सकती है.
ट्रंप की प्रतिक्रिया: अदालत पर ही साधा निशाना
अदालत के फैसले के बाद ट्रंप ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने इसे 'पक्षपातपूर्ण न्याय व्यवस्था' का उदाहरण बताया और अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चेताया कि यदि ये टैरिफ हटा दिए गए, तो इसका गंभीर नुकसान अमेरिका को भुगतना पड़ेगा. उन्होंने यह भी भरोसा जताया कि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें न्याय मिलेगा और टैरिफ नीति देश के हित में बरकरार रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट पर टिकी सबकी निगाहें
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप अपनी नीति को न्यायिक मोर्चे पर बचा पाएंगे या फिर उन्हें एक और राजनीतिक झटका लगेगा. जो भी हो, इतना तय है कि यह मामला सिर्फ एक नीतिगत बहस नहीं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र में कार्यकारी शक्तियों की सीमाओं पर भी एक बड़ा परीक्षण बन चुका है.
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