सैलरी आते ही हो जाता है गायब? इन टिप्स को आज ही करें फॉलो, परिणाम देख जलने लगेंगे दोस्त

    हर महीने की पहली तारीख को जैसे ही मोबाइल में मैसेज टनटनाता है, "आपके खाते में सैलरी जमा कर दी गई है", चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. लेकिन ये मुस्कान ज़्यादा दिन टिकती नहीं. मुश्किल से 10 तारीख आती है.

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    Image Source: Meta AI

    Viral News: हर महीने की पहली तारीख को जैसे ही मोबाइल में मैसेज टनटनाता है, "आपके खाते में सैलरी जमा कर दी गई है", चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. लेकिन ये मुस्कान ज़्यादा दिन टिकती नहीं. मुश्किल से 10 तारीख आती है और हालत ये हो जाती है कि पेट्रोल भराने से पहले UPI बैलेंस चेक करना पड़ता है. अगर आप भी सोचते हैं कि “यार, सैलरी तो ठीक-ठाक है, फिर भी महीने के बीच में ही कंगाली क्यों छा जाती है?”, तो आप अकेले नहीं हैं. देश में लाखों लोग हर महीने इसी तनख्वाह की ट्रैजिक स्टोरी से गुजरते हैं. अब सवाल ये उठता है कि आखिर सैलरी जाती कहां है?

    असल में, जवाब बहुत आसान है, "बिना प्लानिंग खर्च"। हम जरूरत और शौक का फर्क ही नहीं समझ पाते. मान लीजिए, घर का किराया, राशन, बच्चों की फीस, बिजली का बिल ये सब जरूरत हैं. लेकिन हर वीकेंड ऑनलाइन खाना ऑर्डर करना, हर महीने नए कपड़े लेना और इंस्टाग्राम के लिए घूमने निकल जाना, ये सब शौक हैं. यही कारण है कि सैलरी आते ही आंख मूंदकर खर्च शुरू कर देते हैं और 15 तारीख तक हाथ मलते रह जाते हैं.

    तो करना क्या है?

    सीधी सी बात है कि बजट बनाइए, फिर खर्च करिए. सैलरी आते ही एक पर्सनल एक्सेल शीट बना लीजिए या डायरी में लिख लीजिए, इस महीने कितने पैसे कहां लगेंगे. जैसे: किराया = 25%, राशन = 15%, ट्रैवल = 10%, बच्चों का खर्च = 20%… फिर जो बचता है, उसे ही 'खर्च करने लायक रकम' मानिए.

    अब बात करते हैं लाइफस्टाइल और क्रेडिट कार्ड वाले जाल की.

    आजकल इंस्टाग्राम पर दिखने वाला हर स्टोरी वाला लाइफस्टाइल असली नहीं होता. लेकिन हम वही देखने के बाद खुद पर दबाव बना लेते हैं, "वो इतना कमा रहा है, इतना खर्च कर रहा है, मैं क्यों नहीं?" और फिर शुरू होता है, EMI, BNPL, और क्रेडिट कार्ड का खेल. जब तक क्रेडिट कार्ड का बिल नहीं आता, तब तक लगता है सब कंट्रोल में है. लेकिन असल झटका तब लगता है जब 15 हज़ार की सैलरी पर 12 हज़ार का कार्ड बिल सामने आता है.

    तो क्या करें?

    सबसे पहले, दिखावे की जिंदगी से बाहर आइए. खर्च उतना ही करिए जितनी कमाई है. अगर वाकई इमरजेंसी है तो किसी भरोसेमंद इंसान से interest-free मदद लीजिए, बैंक या कार्ड कंपनी से नहीं. और कोशिश करिए कि एक बार जो मदद लें, उसे समय पर लौटा दें. तभी आपकी आर्थिक साख और रिश्ते बची रहेगी.

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